Ayurvedic Dietician की मांग दुनिया में बढ़ती जा रही है। जैसे-जैसे आयुर्वेद का प्रचार बढ़ते जा रहा है लोगों के मन में simple ayurvedic diet plan से संबंधित जानकारी को प्राप्त करने के लिए उत्साह भी दिखने लगा है। इन दिनों दुनिया भर के Ayurvedic dietitian के पास बहुत अधिक फोन आने लगे है। आखिर क्यों ना हो क्योंकि ayurvedic vegetarian diet plan यदि सही तरीका से निर्धारित किया गया तो सभी तरह के शारीरिक और मानसिक व्याधि तुरंत नष्ट हो जाते हैं। ayurvedic vegetarian diet plan के विषय में इन दिनों गूगल में भी खूब search किया जा रहा है। तो आइए आयुर्वेदिक ग्रंथों के आधार पर अति सरल भाषा में simple ayurvedic diet plan के विषय में चर्चा करते हैं।
आयुर्वेदिक आहार के विषय में जानने के लिए आपको प्रामाणिक आयुर्वेदिक ग्रंथों में लिखे गए ayurvedic diet plan को उसी प्रकरण से समझना चाहिए जिस तरह से क्रम बद्ध तरीका से लिखा गया है।
दोस्तों ध्यान देना इन दिनों ayurvedic diet plan के नाम से तरह-तरह के मनगढ़ंत बातों को बताया जाता है इस पोस्ट में मैं आपको जो भी बातें बताऊंगा वह सभी आयुर्वेदिक सम्मत होंगे प्रत्येक बातों के पीछे में reference भी दूंगा ताकि आपको यकीन हो।
दोस्तों आयुर्वेद बेहद गंभीर शास्त्र है चरक संहिता मैं लिखा हुआ है की आचार्य पुनर्वसु का जीवनकाल लगभग 300 वर्ष (इसमें कुछ नीचे ऊपर हो सकता है) तक रहा। मान्यता है कि पुनर्वसु आत्रेय जी ने अपने जीवन के लगभग 200 वर्ष तक आयुर्वेद के ऊपर research करके फिर अंत में यह सिद्धांत प्रतिपादन किया है। हम अंदाज लगा सकते हैं जिसको हम चार-पांच साल तक पढ़ने से अपने आप को धुरंधर समझ बैठते हैं वही इन मनीषियों ने इस शास्त्र को समझने में 200 साल का लंबा समय लगाया ताकि आप और हम जैसे लोग दिग्भ्रमित ना हो।
विरुद्ध आहार विचार | Against diet.
यदि आप Ayurvedic Dietician बनना चाहते हैं या Best simple And healthy ayurvedic diet plan को समझ कर खुद को निरोग रखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको विरुद्ध आहार विहार से संबंधित बातों को सबसे पहले जानना होगा।
विरुद्ध आहार समय के साथ अनेक हो सकते हैं मगर चरक संहिता सूत्र स्थान में वर्णित विरुद्ध आहार को समझने मात्र से आप आने वाले सभी प्रकार के भोजन की अव्यवस्थाओं को समझ सकते हैं।
चरक संहिता में देश विरुद्ध, काल विरुद्ध, अग्नि विरुद्ध, मात्रा विरुद्ध, सात्म्य विरुद्ध संस्कार विरुद्ध वीर्य विरुद्ध कोष्ठ विरुद्ध अवस्था विरुद्ध क्रम विरुद्ध परिहार विरुद्ध उपचार विरुद्ध पाकविरुद्ध संयोग विरुद्ध दोष विरुद्ध अरद्य विरुद्ध कालधान्य विरुद्ध इन सभी संयोगवश होने वाली विरुद्ध आहार को ध्यान में रखकर हमें अपने जीवन को संतुलित रखने का प्रयास करना चाहिए ध्यान देना वही सफल Ayurvedic Dietician है जिसने दिमाग में ऊपर लिखे गए विरुद्ध आहर सूत्र को भली-भांति याद कर लिया हो और हर रोगी को आहार के विषय में इन्हीं शास्त्रोक्त सिद्धांत के आधार पर उनके आहार विहार को नियमित करता हो। आई समझते हैं इन विरुद्ध आहार से संबंधित विचारों का व्याख्यान शास्त्र कार किस तरह से करते हैं।
भूशया बिलवासित्वादानूपानूपसंश्रयात् ।
जले निवासाज्जलजा जलेचर्याज्जलेचराः ।।५४।।
स्थलजा जाङ्गलाः प्रोक्ता मृगा जाङ्गलचारिणः ।
विकीर्य विष्किराश्चेति प्रतुद्य प्रतुदाः स्मृताः ।। ५५।।
योनिरष्टविधा त्वेषा मांसानां परिकीर्तिता ।
चरक संहिता 27अध्याय अन्न पान स्थान में प्रसह,विलेशय,आनूप,जलचर,जांगल, आदि स्थान के नाम बताए गए हैं। यहां देश विरुद्ध कहने का अभिप्राय हमें यह समझना चाहिए कि जैसे जांगल देश (जांगल का मतलब जहां वर्षा बिल्कुल नहीं होता या बहुत कम होता है) ऐसे स्थान में रहने वाले लोगों को रुक्ष और तीक्ष्ण गुण वाला भोजन का अधिक अभ्यास नहीं करना चाहिए जांगल प्रदेश में रहने वाले लोगों के लिए रुक्ष,और तिक्ष्ण गुण वाला भोजन देश विरुद्ध कहलाता है।
एक और उदाहरण लीजिए।
आनुपदेश (ऐसा स्थान जहां बरसात अधिक होता है) मैं रहने वाले लोगों को स्निग्ध शीत गुण वाला मांस या भोजन अधिक दिन तक सेवन करना देश विरुद्ध कहलाता है। आयुर्वेद में देश विरुद्ध के विषय में काफी चर्चा किया हुआ है। जो आदमी जम्मू कश्मीर जैसे ठंडी एरिया में जन्म लेकर लंबे समय के बाद किसी गर्म प्रदेश में रहने के लिए जाता है तो उस स्थान में अपने प्रदेश के परंपरागत जो गर्म प्रकृति के आहार-विहार है उसे वहां त्याग देना चाहिए गर्म प्रदेश में रहना हो तो वहां उसी प्रदेश के अनुकूल आहार बिहार को अपनाना चाहिए। इसी प्रकार अन्य प्रदेशों के लिए भी समझ लो।
जिस प्रकार का ॠतु चल रहा है उसकी विपरीत गुण धर्म वाले आहार बिहार करना चाहिए जैसे-मान लीजिए हेमंत ऋतु चल रहा है- हेमंत ऋतु में बहुत ठंड होती है ऐसे समय में यदि आप कोई शीतल और रुक्ष प्रकृति वाला पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं तो यह हेमंत ऋतु के विपरीत हो जाएगा। इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु अत्यंत गर्मी वाला समय है इस ऋतु में यदि उष्ण और कटु रस का अधिक सेवन करते हैं तो यह भी ग्रीष्म ऋतु में विरुद्ध आहार कहलाएगा। जो ऋतु है हमे उस ॠतु के गुण विपरीत आहार का सेवन करना चाहिए। जैसे हेमंत ऋतु में उष्ण,स्निग्ध द्रव्य उत्तम लाभप्रद होता है।
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यदि आप सफल Ayurvedic Dietician बनना चाहते हैं तो आपको अग्नि विरुद्ध भोजन से संबंधित विचार रोगी से लेना चाहिए। जब आप रोगी को Ayurvedic diet chart बना कर दे रहे हैं तो इसमें उस व्यक्ति का अग्नि कैसा है और क्या वह अपने अग्नि के विपरीत आहार-विहार का सेवन तो नहीं कर रहा है यह बात रोगी से अच्छी तरह पूछना चाहिए।
जैसे अग्नि को चार क्वालिटी वाला आयुर्वेद ने माना है। सम अग्नि ,विषम अग्नि ,तिक्ष्ण अग्नि और मंदाग्नि।
हर प्रकार की भोजन को पचाए वह सम, खाया हुआ भोजन कभी पचता है कभी नहीं पचता वह विषम, जितना मर्जी खाओ बहुत जल्द पच जाता है और दुबारा बहुत जल्दी ही भूख लगता है यह तिक्ष्ण है, कुछ भी खाया हुआ ना पचे वह मंदाग्नि है। यदि कोई व्यक्ति तीक्ष्ण अग्नि वाला है और वह अल्प भोजन करता है, या किसी व्यक्ति का अग्नि मंद है और वह गुरु स्निग्ध भोजन करता है यह अग्नि विरुद्ध भोजन हुआ। सभी को अपने अग्नि बल को देखकर भोजन के मात्रा और गुण निर्धारित करना चाहिए।
यदि आप सफल dietician बनने की तैयारी कर रहे हैं तो अपनी डायरी में रोगी से नित्य पूछे जाने वाले सवालों के क्रम में मात्रा विरुद्ध आहार को भी सम्मिलित कर दीजिए। Best diet Chart के क्रम में इसे जरूर शामिल करना चाहिए। मात्र विरुद्ध आहार का मतलब होता है एक ऐसा द्रव्य जिसका गुणधर्म दूसरे द्रव्य के गुणधर्म के साथ मिलने से दोष युक्त हो सकता है। जैसे समान मात्रा में मिलाया हुआ घी और शहद यह मात्रा विरुद्ध की श्रेणी में आता है। इसी प्रकार यदि दूध में नमक डालकर खाते हैं तो यह भी मात्रा विरुद्ध आहार है। अब आप अपनी बुद्धि से इसी प्रकार के अनेक द्रव्यों का परिकल्पना कर सकते हैं।
मुझे पूरा यकीन है आप For Ayurvedic Dietician तो हो मगर इस सूत्र के ऊपर आपने कभी ध्यान नहीं दिया होगा।सात्म्य विरुद्ध का मतलब होता है यदि किसी आदमी को बचपन से नमकीन खाने का मन करता है उसे मीठा पसंद नहीं है तो उसके लिए नमकीन यानी कटु रस सात्म्य भोजन हुवा। यदि उसको दवाई के रूप में भी आप मधुर रस प्रधान द्रव्यों का अधिक सेवन कराते हैं तो यह भी उसके लिए सात्म्य विरुद्ध भोजन होता है। कटु,उष्ण सात्म्य वालों को शीत स्निग्ध रस सात्म्य विरुद्ध होता है।
आयुर्वेद में एक जगह ऐसा लिखा हुआ है की मयुर के मांस को एरण्ड के लकड़ी में गुथकर जला कर या पकाकर बनाते है तो यह योग संस्कार विरुद्ध कहलायेगा। आजकल लोग जानवर के मांस अपक्व अवस्था में ही खाते हैं, पनीर यह दूध से बना हुआ है इसमें भी नमक का प्रयोग संस्कार विरुद्ध कह सकते हैं। फल फ्रूट को कढ़ाई में तेल डालकर फ्राई करना और उसको खाना, चाय में कोल्ड ड्रिंक डालकर पीना यह सभी संस्कार विरुद्ध भोजन है।
वीर्य विरुद्ध आहार विचार।
आजकल लोग मनमर्जी नए और स्वादिष्ट भोजन बनाने के चक्कर में सब गड़बड़ कर देते हैं। इन दिनों कोल्ड कॉफी का प्रचलन बढ़ते जा रहा है। इसमें ठंडा और गर्म दोनों प्रकार के विर्य वाले द्रव्यों को एक साथ मिक्स करके आपके गिलास में परोसा जा रहा है यह वीर्य विरुद्ध आहार के अंतर्गत आता है। इस प्रकार के भोजन अम्ल पित्त, पिनस,विषर्प जैसे लोगों को निमंत्रण देता है।
कोष्ठ विरुद्ध आहार विचार।
इसके तहत यदि क्रुर कोष्ठ (जिसको हमेशा कब्ज होता रहता है जिसका पेट तेज दवाई खाने पर भी सही तरह से सफाई नहीं होती) ऐसे लोगों को अल्प मात्रा,लघु गुण, अल्प विर्य वाला भोजन तथा मृदु कोष्ठ वालों को अति मात्रा मे गुरु,शित, भोजन तथा भेदनीय आहार का सेवन कोष्ठ विरुद्ध हो जाता है।
Dietician को हमेशा रोगी के activities को ध्यान में रखकर ही simple ayurvedic diet plan की तैयारी करानी चाहिए। यदि व्यक्ति दिन भर मेहनत करता है, exercise करता है, संभोग क्रिया में अधिक रत रहता है, दुर्बल शरीर है, वृद्धावस्था है तो इन सभी परिस्थितियों में ayurvedic diet plan बताते वक्त उष्ण,रुक्ष तथा वात प्रकोपक भोजन खाने के लिए मना करना चाहिए इसी प्रकार दिन भर आलस्य वश सोते रहने वाले, थोड़ी सी भी व्यायाम और मेहनत करने वाले जिनके शरीर में मोटापा ने घर कर लिया गया हो ऐसे लोगों को कफ को बढ़ाने वाले आहार नहीं देना चाहिए इनके लिए यह अवस्था विरुद्ध भोजन कहलाता है।
ayurvedic vegetarian diet plan बताते वक्त सभी Ayurvedic Dietician का ध्यान क्रम विरुद्ध आहार के तरफ भी जाना चाहिए। आयुर्वेद के सभी ग्रंथों में क्रम विरुद्ध आहार के विषय में सभी से ज्यादा चर्चा देखने को मिलता है क्योंकि ज्यादातर व्यक्ति क्रम विरुद्ध आहर का अति सेवन से ही रोगी होता है तो simple ayurvedic diet plan बताते वक्त Ayurvedic Dietician को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
क्रम विरुद्ध का मतलब होता है पेट में पहले खाया हुआ अन्न है कि नही। है और दोबारा अब भोजन करना है तो शरीर का क्या स्थिति होनी चाहिए जैसे:-
रात में खाया हुआ भोजन यदि शुभ अभी सही तरीका से डाइजेशन हुआ है की नहीं और रात्रि भोजन का अपक्व अवस्था में ही सुबह भोजन किया गया तो रात का भोजन जहर में परिवर्तित हो जाएगा इसीलिए सुबह कुछ भी खाते वक्त हमें इस बात को विशेष ध्यान देना होता है की रात में खाया हुआ भोजन सही तरीका से डाइजेश हुआ है कि नहीं।
® सुबह उठते ही लैट्रिंग पिसाब अच्छी तरह हो जाना चाहिए।
® उठने के बाद जितना देरी से लैट्रिन में जाते हैं उतना अजीर्ण है एसा समझना चाहिए।
® फ्रेश हो जाने के बाद शरीर में हल्का पन महसूस होता है।
® मन प्रसन्न होने लगता है।
® सूखकर उद्गार भी आता है।
® खुलकर भूख लगता है।
यह सभी सुखकर लक्षण दिखने पर और पूर्ण रूप से भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए इसके विपरीत अभी मल त्याग हुआ नहीं है, भूख नहीं लगा है ऐसे अवस्था में भोजन करना तथा बहुत अधिक भूख लगने पर थोड़ा भोजन करना यह दोनों ही स्थिति को क्रम विरुद्ध आहार माना जाता है।
भैंस और सूअर के मांस खाकर उष्ण द्रव्यों का सेवन करना जहरीला हो सकता है इसे healthy ayurvedic diet plan फिर तैयारी करने वाले लोगों को त्यागना चाहिए। इस प्रकार के भोजन व्यवस्था को परिहार विरुद्ध कहा जाता है।
यह भी बहुत महत्वपूर्ण विचार है जिसको प्रत्येक Ayurvedic dietitian को ध्यान रखना चाहिए। कभी-कभी आयुर्वेदिक चिकित्सक भी इस सूत्र को भूल जाते हैं या हम कह सकते हैं आयुर्वेदिक चिकित्सक इस सिद्धांत को रोगी के ध्यान में डालना भूल जाता है मगर panchkarm treatment करते वक्त यह उपचार विरुद्ध विचार बहुत महत्व का होता है।
इसके तहत हमें इस बात का विचार अवश्य करना होता है की यदि रोगी उष्ण स्निग्ध घृत सेवन के कुछ काल पर्यन्त तक शीतल द्रव्यों का सेवन करता है तो यह उपचार विरुद्ध आहार हो जाता है।
healthy ayurvedic diet plan की तैयारी करते हैं तो पाकविरुद्ध आहार के विषय में रोगी को वताना ही होगा नहीं तो आप का सभी मेहनत निष्फल हो सकता है। पाकविरुद्ध आहार का स्पष्ट उल्लेख चरक संहिता में मिलता है वताया जाता है कि दूषित स्थान पर पकाया हुआ भोजन, दूषित लकड़ीयो से पकाया हुआ भोजन, दूषित विधि से पकाया हुआ भोजन,अर्ध पक्व भोजन,जला हुआ भोजन पाकविरुद्ध कहलाता है।
Best simple And healthy ayurvedic diet Chart की तैयारी करते हैं तो संयोग विरुद्ध भोजन का निषेध करें।
आजकल ज्यादा तर बच्चे अज्ञानतावश इस प्रकार का संयोग विरुद्ध भोजन के आदी हो चुके हैं।संयोग विरुद्ध भोजन कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों को जन्म देता है। दुध के साथ अम्ल द्रव्य,नमक,मूली, मछली, किसी भी रूप में मिलाकर सेवन करना
संयोग विरुद्ध आहार होता है। पेट में पहुंचकर यह जहरीला हो जाता है। यदि लंबे समय तक इस प्रकार के विरोधी अन्न का सेवन होता रहा तो इंसान का मौत भी हो सकती है इसे आप slow poison समझ सकते हैं।
इसी तरह खिर के साथ कटहल,सत्तू, शराब।
शहद के साथ समान घी, बर्षात का पानी, गर्म पानी, गर्म दूध।
गर्म पानी के साथ शहद,कूल्फी, आइसक्रीम।
ठंडा पानी के साथ घी,तेल,गर्म दूध,तरवूज,अमरूद,खीरा,ककड़ी,मूंगफली।
घी के साथ ठंडा पानी
खरबूजा के साथ लहसुन,दही,दूध,मूली के पत्ते और पानी।
तरवुज के साथ ठंडा पानी और पुदीना।
चावल के साथ सिरका।
उडद के दाल के साथ मूली, दूध,शराब और खिचड़ी । यह सभी संयोग विरुद्ध आहार हैं simple ayurvedic diet plan की तैयारी यदि कर रहे हैं तो इसका विचार अवश्य करें।
ज्यादातर dietician simple ayurvedic diet plan की तैयारी इसी दोष विरुद्ध सुत्र के सिद्धांत अनुसार करते हैं। इसके तहत healthy ayurvedic diet plan प्रति रुचि रखने वाले व्यक्तियों को उसके देह प्रकृति दोष के अनुरूप गुणधर्म वाले भोजन का व्यवस्था किया जाता है जैसे:- कफ प्रकृति वालों को रुक्ष,उष्ण और लघु आहार रस का सेवन तथा वात प्रकृति वालों को गुरु स्निग्धा प्रकृति वाला आहार रस का सेवन हितकर होता है इसके विपरीत वात प्रधान देह प्रकृति वालों को रुक्ष, शित गुण वाले आहार रस का सेवन तथा कफ प्रकृति वालों को गुरु स्निग्ध रस वाले आहार द्रव्यों का सेवन दोष विरुद्ध कहलाता है।
Ayurvedic dietician जब रोगी के लिए healthy ayurvedic diet plan की तैयारी करता है तो उसको इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि जो मैंने healthy ayurvedic diet का chat बनाया है क्या उसमें ऐसा कोई पदार्था है जो रोगी के लिए नापसंद वाला हो जैसे कुछ लोगों को दूध पीना पसंद नहीं है तो किसी को दही,शहद,चावल या कुछ और जो उस रोगी के लिए स्वस्थ्यकर आहार तो है मगर अरुचिकर है यानी उसे पसंद नहीं है तो उसके लिए स्वस्थ कर होते हुए भी वह पदार्थ अरद्य विरुद्ध आहार हो जाता है। चिकित्सक को चाहिए इस तरह के अरुचिकर पदार्थों को पूछ कर healthy ayurvedic diet plan से उसको हटा देना चाहिए।
कोई भी शास्त्र तभी विश्वसनीय हो सकता है जब उस शास्त्र में परिवर्तनशील समय के साथ नवीन संस्करण का व्यवस्था हो सके। आज वेद और पुराणों में नवीनीकरण न होने की वजह से नई पीढ़ी के लोगों को उस शास्त्र के बारे में समझाना थोड़ा मुश्किल होता है अगर समय चक्र के प्रवाह के साथ यदि उस शास्त्र के सिद्धांत को अपडेट करते हुए चलते तो जरूर किसी को समझाने की जरूरत नहीं पड़ती आयुर्वेद चिकित्सा विधि समय-समय पर नवीनीकरण होता आया है। अगर मैं होम्योपैथिक ,एलोपैथिक, पंचगव्य चिकित्सा विधि इन सभी को updated Ayurvedic thesis कहूंगा तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। मैंने आयुर्वेद के इसी आहर अन्नपान विचार में एक नवीन संस्करण की आवश्यक देखा इसीलिए उसको मैंने यहां ऋतुधान्य विरुद्ध नाम दिया हूं यह नाम आपको किसी ग्रंथ में मिलेगा नहीं यह मेरे द्वारा प्रदत्त नाम है।
क्या है ऋतुधान्य विरुद्ध आहार?
हालांकि इसका प्रसंग ग्रंथ में जरूर मिलता है लेकिन दृष्टिकोण थोड़ा अलग है बस इतनी सी बात है।ऋतुधान्य विरुद्ध का अर्थ होता है जिस अन्न को जिस ऋतु में प्राकृत रुप से उत्पन्न होना चाहिए उस नाम वाले अन्न को दूसरे ऋतु में उत्पन्न करके उस अन्न का सेवन लंबे समय तक सेवन करना शरीर के लिए अहितकर होता है। ऐसे हम अक्सर चावल को हेमंत ऋतु में तैयार होते हुए देखते हैं चुंकी अक्सर चावल का उत्पादन सर्दी के मौसम में ही होता है मगर व्यापार को ध्यान में रखकर यदि आप ग्रीष्म ऋतु में भी चावल का उत्पादन करने लगे तो उस चावल में हेमंत ऋतु मे पाए जाने वाले सुख कर गुण नहीं रहता क्योंकि हेमंत ऋतु बल वर्धक गुणों के लिए जाना जाता है और ग्रीष्म ऋतु प्रखर सूर्य की किरण से शरीर का शोधन कर्म करने वाला ऋतु के नाम से जाना जाता है अब आप खुद अंदाज लगा सकते हैं कि ग्रीष्म ऋतु में उत्पन्न होने वाला चावल में स्वयं का बलवर्धक गुण न होकर विपरीत शरीर शोधन करने वाला गुण होता है चावल जहां प्राकृतिक अवस्था में शरीर में कफ कर्म करने के लिए जाना जाता है यह तो विपरीत गुण होने के वजह से कफ नाशक गुण वाला होता है इसीलिए यह ग्रीष्म ऋतु में उत्पन्न होने वाला चावल अपने ऋतु के गुण ना होने के कारण ऋतुधान्य विरुद्ध आहार के श्रेणी में आ जाता है इसी प्रकार कोई भी खाद्य पदार्थ वह अपने ॠतु को छोड़कर दूसरे ऋतु में उत्पन्न होने लगे तो यह अधिक काल तक सेवन करने योग्य आहार के श्रेणी में नहीं आता यदि अज्ञानता और प्रमादवस उसका अधिक सेवन किया जाता है तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
ऋतुधान्य विरुद्ध आहार के संदर्भ में एक और प्रसिद्ध कथा चरक संहिता में उल्लेख किया हुआ है की पहले के जमाने में लोग यायावर व्यवस्था में जीते थे यायावर यानी जिसमें भोजन के लिए भंडारण का व्यवस्था नहीं होता था। इंसान उस वक्त निरंतर यहां से वहां घूमते रहते थे और जहां जो वस्तु खाने को मिल जाता था वह लोग उस वक्त उसी जंगली फल फ्रूट,गेहूं चावल,वाजरा,मक्की जौ आदि को निकाल कर उसी वक्त आयुर्वेदिक आहार विधि से पकाकर खाया करते थे तो यह यायावर व्यवस्था बेहद आरोग्य वर्धक हुआ करता था उस वक्त तक कोई रोगी नहीं रहते थे लेकिन जैसे ही इंसान ग्राम्य व्यवस्था में आए उसके बाद अन्न को संग्रहण करना प्रारंभ किया, सुखकर जीवन जीने के आदी हो गए उसके बाद जब एक ऋतु में उत्पन्न अन्न सेवन दूसरे ऋतु में संस्कार विरुद्ध, मात्रा विरुद्ध आदि जो ऊपर बताए हुए विधि रहित जीवन जीने लगे तो फिर शरीर में रोग व्याप्त होने लगा। तो इसे हम ऋतुधान्य विरुद्ध आहार के श्रेणी में देख सकते हैं।
यकीन मानिए ऊपर बताए हुए विधि से अगर आप अपने जीवन को संतुलित रखने का प्रयास करते हैं तो ना तो इंसान ज्यादा मोटा होगा ना ही पतला होगा नहीं अस्वस्थ होगा इंसान का आयुर्वेदिक आहार व्यवस्था को नजानना ही रोग युक्त होने का मुख्य कारण है।
यदि आप सफल Ayurvedic dietician बनना चाहते हैं तो ऊपर वर्णित विरुद्ध आहार के संदर्भ में आप एक छोटा सा बुक लिख सकते हैं वहां ऊपर लिखे गए सभी विरुद्ध आहार के कारणों को कम शब्दों में समझाने का प्रयास करें ताकि रोगी को उसका अर्थ भली-भांति समझ में आए। यकीन मानिए ऐसा संभव हो सका तो आप से बड़ा Ayurvedic dietician और कोई हो नहीं सकता इन नियमों को अनदेखा करके यदि आप कुछ भी healthy diet plan के नाम पर मनगढ़ंत बातें लिखेंगे तो वह आयुर्वेद सम्मत तो नहीं होगा बल्कि उस व्यक्ति के स्वस्थ कर और रुचिकर भी नहीं हो सकता।
Healthy ayurvedic diet plan खाने वाले पदार्थों से नहीं बल्कि ऊपर लिखे गए विरुद्ध आहार और विरुद्ध बिहार को समझाने से होता है। अगर कोई इंसान ऊपर वर्णित विधि नियमों को ध्यान में रखकर आहार विहार का व्यवस्था करता है तो यही वास्तव में simple And healthy ayurvedic diet समझना चाहिए।
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