Sinusitis is a condition in which there is an inflammation of the sinuses, causing a buildup of mucus, blood, and bile in the nasal passage. It results in the disturbance of the airflow, affecting the person's head. Although it is primarily a nasal disorder, it is also connected to the respiratory system. Sinusitis occurs when there is swelling in the internal mucous membrane of the nasal passage due to any reason. Common symptoms include cough, difficulty breathing, chest pain, and hoarseness, which can also be found in other respiratory diseases. Sinusitis is described as a possible
कफादि दोषों की नासिका से बाहर निकलने की प्रवृत्ति जिस रोग में हों या नासामूल में कफ, रुधिर और पित्त संचित होते हो वायु प्रकुपित होकर मनुष्य के शिर को बातपूर्ण कर देता हो नासिका द्वारा प्रतिक्षण जलक्षति होती रहती हो-इसे प्रतिश्याय कहते हैं । यद्यपि यह एक प्रधान नासारोग है तथापि इसका सम्बन्ध प्राणवह स्रोतस से भी है। नासिका की आभ्यन्तरिक श्लेष्मकला में किसी भी कारण से शोथ उत्पन्न होकर प्रतिश्याय Sinusitis होता है । प्रत्येक से कास, श्वास, उरःशूल, स्वरभेद आदि लक्षण होते है जो प्राणवह स्त्रोतस की अन्य व्याधियों में भी मिलते हैं । (Sinusitis) से कास और कास से क्षय होने की सम्भावना का भी वर्णन है ।
Sinusitis रस प्रदोषज विकार है परन्तु सुश्रुत ने इसमें रक्त की दृष्टि की मानी है। प्राण और उदान के स्थान की व्याधि होने से प्राणावृत उदान में भी प्रतिश्याय Sinusitis को एक लक्षण के रूप में गिना है।
सुश्रुत ने रक्त की भी दृष्टि मानी है जो सम्भवतः रक्तवह स्रोतोमूल यकृत और प्लीहा के ठीक कार्य न करने की ओर संकेत है। आम, आमविष तथा रस रक्त की दृष्टि से एलर्जिक प्रतिश्याय का भी आभास मिलता है ।
ऐसा प्रतीत होता है कि आशुकारी कारणों से वायु का सहसा प्रकोप होकर जो प्रतिश्याय होता है उसे यदि ठीक न किया जाय तो पश्चात् कफ प्रकोप एवं रक्तदृष्टि होकर वह बिगड़ सकता है।
निदानों से कोष्ठ में कफ एवं वायु का चय होता है, पश्चात् प्रकोप और प्रसर (साम दोषों का ) होता है, वे रस-रक्त के साथ नासामूल में खवैगुण्य मिलने पर वहाँ स्थान संचय करते है और कफ वायु के साथ नासा से बाहर निकलने लगता है तब प्रतिश्याय उत्पन्न होता है ।
join for ayushyogi online ayurveda free course
Several factors can contribute to the development of sinusitis. Some common causes include:
आयुर्वेद में प्रतिश्याय Sinusitis किन किन कारणों से हो सकता है विस्तृत चर्चा किया गया है कृपया इन सभी कारणों को ध्यान से पढ़ें और रोगी से प्रश्न करें इनमें से कोई भी कारणों का यदि रोगी निरंतर अभ्यास करता हो तो उन्हें तुरंत बंद करें।
1. सर्दी के मौसम में निकलने वाली (fog) कोहरा में ज्यादा काम करने से`
2. रात के ओस में ज्यादा बैठने से`
3. अधिक रोने से`
4. पूर्व दिशा से आने वाली तेज हवाओं के संपर्क में ज्यादा रहने से`
5. हमेशा अपने रहने की जगह परिवर्तन करते रहते हैं`
6. रात भर ना सोने से`
7. बहुत ठंडा पानी मात्रा में पीने से`
8.भूख ना लगने पर भी अधिक मात्रा में भोजन करने से`
9.भोजन करने के तुरंत बाद स्नान करने से`
10.खाना खाने के बाद तुरंत अधिक मात्रा में कोई भी लिक्विड चीजों का अधिक सेवन करने से`
11.गुरु मधुर और शीतल पदार्थों का अधिक सेवन करने से`
12.बहुत अधिक रूक्ष पदार्थों का सेवन करने से`
13.अधिक मात्रा में स्विमिंग या बारिश में भीगने से`
14.मंदाग्नि के कारण`
15.कभी पेट भर भोजन करना और कभी भूखा रहना (विषमाशन)`
16.हमेशा कब्ज constipation रहता है`
17.हमेशा स्त्रियों की चिंतन करना या शारीरिक संबंध बनाना`
18.सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में सर्दी लगने से (ऋतु वैषम्य)`
19.धूएं और उड़ती हुई मिट्टी के संपर्क में ज्यादा रहते हुए बहुत ठंडा पानी निरंतर पीने से`
20.मल और मूत्र को रोकने से`
21.दिन रात सोते रहने से`
22.बहुत नीचे झुका कर सिर को बड़ी देर तक रखने से`
23.उल्टी vomiting के बेग को रोकने से`
24.आंसू के वेग को रोकने से`
Sinusitis का सामान्य चिकित्सा में त्रिभुवनकीर्ति, लक्ष्मीविलास, अभ्रक, श्रृंग भष्म, मरिच्यादिवटी, लवंगादिवटी, यूनानी का बनफसादिक्वाथ, गोजिह्वादि क्वाथ, तैलनस्य तथा षड्बिन्दुतेल नस्य का बहुत प्रयोग किया जाता है।
It's important to note that the symptoms of sinusitis can overlap with other respiratory conditions. If you experience persistent or severe symptoms, it is advisable to consult a healthcare professional for an accurate diagnosis.
प्रतिश्याय के पांच भेद बताये गए हैं-वातज, पैतिक, कफज, सान्नि- पातिक तथा रक्तज । रसरत्नसमुच्चयकार ने मलसंचयजनित प्रतिश्याय का भी उल्लेख किया है जो Alergic rhinitis की ओर संकेत करता है । मलसंचय मात्र विबंध को बताता हो तो चरक ने इसका समावेश निदानों में कर दिया है, इसको विशिष्ट भेदों में नहीं लिखा है ।
नासिकाभ्यन्तर कला शोथ प्रतिश्याय में होता है तब वह Rhinitis कहलाता है और नासास्त्राव या नासाशुष्कता अवस्थानुसार मिल सकते हैं। जब शोष Larynx (स्वरयंत्र) तक जाता है, तब स्वरभेद मिलता है, साथ ही कम हो जाता है। तब शोथ Pharynx में हो जाता है, आवाज बैठ जाती है। और पश्चात् शोथ श्वासपथ तक (Bronchus ) जा सकता है तो कास, कफप्टीवन, ज्वर आदि लक्षण हो सकते हैं। Influenza को वातश्लैष्मिक ज्वर या श्लेष्म प्रधान सन्निपात ज्वर में मानते हैं। लक्षण समुच्चय को देखते हुए यह प्रतिश्याय से भी मेल खाता है ।
घृतपान, धूम, पाणिस्वेद, नस्य एवं आस्थापन वस्ति का प्रयोग करें खाने के लिए स्निग्ध, अम्ल, उष्ण, मांसरस, उष्णजल से स्नान, ताम्बूल का प्रयोग करें ।
मल्ल सिन्दूर १२५ मि० ग्राम + नागगुटी ६०० मि० ग्राम+अभ्रक भस्म ५०० मि० ग्राम+श्रृंगभस्म ५००मि० ग्राम
एक योग- ऐसी तीन मात्रा मधु के साथ लें।
अपनी भलाई चाहने वाले बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिए कि वह वातज पीनस (प्रतिश्याय) रोग में चिन्ता, व्यायाम, अधिक बोलना और अति मैथुन-इन कामों से विरत रहे अर्थात् इन्हें न करे।।
औषध सिद्ध घृतपान, आद्रक या शुंठी साधित दुग्ध, पाठाठद्य तेल नस्य, विरेचन के उपाय करने चाहिए।
पथ्य में घृत, दुग्ध, यव, गेहूं,जांगलमांसरस, तिक्तशाक, मूग का सूप हितकर है।
माक्षिक भस्म - ५०० मि० ग्राम+ कामदुधा५००मि० ग्राम+मौक्तिक भस्म १२५ मि० ग्राम+प्रवाल भस्म५०० मि. ग्राम +दिन में तीन बार वासावलेह के साथ ले।
पूयरक्त रोग की चिकित्सा
पूयरक्त रोग में रक्त पित्त नाशक कषाय और नस्यों का प्रयोग करना चाहिए। यदि प्रतिश्याय रोग में नासिका पक गई हो, दाह अधिक होता हो और रूक्षता बढ़ गयी हो, तो शीतल द्रव्यों का स्वरस या क्वाथ से परिषेचन तथा शीतल द्रव्यों को पीसकर लेप लगाना चाहिए और कषाय, स्वादु और शीतल द्रव्यों का कपड़छान चूर्णकर नस्य का प्रयोग करना चाहिए। यदि प्रतिश्याय रोग में पित्त अल्पमात्रा में कुपित हो, तो स्निग्ध द्रव्यों के साथ विरेचन कराना चाहिए
आमावस्था में लंघन, पक्वावस्था में शरीर पर घृत का लेप करके स्वेदन करना चाहिए। मनः शिलादि चूर्ण का प्रधमन नस्य, घना कफ स्राव हो तो भार्ग्यादि तल से नस्य और वमन कराना चाहिए। पथ्य में पटोल, कुलत्थ, तुवर, मूंगका यूष, उष्ण जल एवं कफनाशक अन्न हितकर है।
नागगुटी - ५ रत्ती दिन में दो बार मधु से देने पर तुरन्त लाभ होता है. (नागगुटि में- लवंग, जातीफल,जातिपत्रिका, विषम्, मरिच, पिप्पलीमूल, कस्तुरी, कुकुम-सभी को मिलाकर इसमें आर्द्रकस्वरस की भावना होती है)
नागगुटी द्वितीय योग:-
शुद्ध हिंगूल, शु. बचनाग, लौंग, काली मिर्च, सौंठ, पिप्पली, शु. टंकण, केशर, दालचिनी, जायफल, जावित्री ।
नागगुटी तृतीय योग:-
शुद्ध वत्सनाभ,पिप्पली,लौंग,जयफल,दालचीनी, जावित्री, सोंठ,अकरकरा, मारीच,शुद्ध हिंगुल, शुद्ध टंकण
कफज पीनस रोग में यदि भारीपन और अरुचि हो, तो सर्वप्रथम लेखन कराना चाहिए। इसके बाद दोषों को पकाने के लिए घी का सिर में लेप करने के बाद स्वेद और परिषेक करना चाहिए।
मूंग, सौंठ, पीपर, मरिच का चूर्ण, यवक्षार और घी के साथ लशुन का स्वरस, कफज प्रतिश्याय में देना चाहिए। यदि कफ का उत्क्लेश हो रहा हो, तो कफनाशक वमन द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए ।
कफज प्रतिश्याय में धूमपान तथा अवपीड नस्य का प्रयोग-
खुजली के साथ अपीनस, पूतिनस्य, नासास्राव और कफज प्रतिश्याय में कटु द्रव्यों से बनाया हुआ धूम पीना और अवपीडन नस्य देना हितकर होता है ।।
मनःशिलादि चूर्ण नस्य
मैनसिल, वच, मोठ, पीपर, मरिच, वायविडङ्ग, हींग और गुग्गुल इनका नस्य चूर्ण चाहिये अर्थात् इनके समान भाग के चूर्ण का नस्य देना चाहिए। सोंठ, पीपर, मरिच, त्रिफला- इनके समान भाग को चूर्ण का प्रथमन नस्य लगाना चाहिए।।चरक।।
भार्ग्यादि तेल भी नश्य के लिए अच्छा है।
सान्निपातिक प्रतिश्या से पीनस उत्पन्न हो जाता है अतएव इसकी चिकित्सा तुरन्त की जानी चाहिए। त्रिदोषघ्न औषधियों से सिद्ध तिक्तादि घृत का पान कराना चाहिए। त्रिदोषघ्न औषधियों का क्वाथ, नस्य तथा धूम्रपान कराना चाहिए।
इसमें मकरध्वजवटी, वातविध्वंस, नागगुटी और अभ्रक का प्रयोग करते हैं, अणुतेल का नस्य देते हैं तथा गोजिह्वादिक्वाथ, भार्ग्यादिक्वाथ का प्रयोग करते हैं।
चरक और वाग्भट ने रक्तज प्रतिश्याय का वर्णन नहीं किया है । केवल सुश्रुत ने उसका वर्णन किया है, और पैत्तिक प्रतिश्याय के समान चिकित्सा करने को लिखा है । रक्तज प्रतिश्याय में दुर्गंधि पूयसदृश नासास्राव तथा नासा के अन्दर किसी चीज के सरकने जैसी अनुभूति होती है, इसलिए कमिष्न द्रव्यों का भी प्रयोग साथ में करना चाहिए। संक्रमण (infection) से उत्पन्न प्रतिश्याय को रक्तज प्रतिश्याय के अन्तर्गत मानने वाले आचार्य भी इसमें कृमिघ्न द्रव्यों का उपयोग करने को कहते हैं।
वात से उत्पन्न पीनस रोग में यदि खांसी और आवाज बैठ गया हो तो गरम गाय के घी में यवक्षार मिलाकर पिलाना चाहिए। गरम मांसरस या गरम दूध या स्नैहिक धूमपान करना चाहिए।।
सर्वजित् पीनसे दुष्टे कार्य शोफे च शोफचित् ।
क्षारोऽर्बुदाधिमांसेषु क्रिया शेषेष्ववेक्ष्य च ॥ १५७ ॥
पीनस की चिकित्सा
दुष्ट पीनस Chronic sinusitis रोग में त्रिदोषनाशक चिकित्सा करनी चाहिए। नासाशोथ में शोथनाशक चिकित्सा करनी चाहिए। नासिका में अर्बुद और अधिमांस रोग हो, तो क्षार क्रिया करनी चाहिए और जिन रोगों की चिकित्सा यहाँ नहीं बताई गयी है, उन रोगों में दोष और उपद्रव को देखकर चिकित्सा करनी चाहिए ।
वातज पीनस (प्रतिश्याय) रोग में स्नेहन क्रिया के बाद स्थापन (निरूह) बस्ति द्वारा दोष का निहरण करना चाहिए ।। चरक/चि.२६/१४१.२।
पाठादि तैल
पाठा, हल्दी, दारुहल्दी, मूर्वी, पीपर, चमेली की पत्ती और दन्तीमूल-इनके समभाग कल्क से पकाये गये तेल का पीनस के पक जाने पर नस्य के लिए प्रयोग करना चाहिए।। चरक/चि.२६/१४५।।
पीनस का वेग मन्द होने पर वमन कराने वाले द्रव्य जैसे मनदफल आदि से पकाये हुए दूध में तिल-उड़द मिलाकर बनाई हुई यवागू से वमन कराना चाहिए अर्थात् वमनकारक द्रव्य से विधिपूर्वक दूध को पकाकर उससे तिल, उड़द के साथ यवागू बनाकर रोगी को पिलाना चाहिए, इससे वमन हो जाता है ।।
त्रिभुवनकीति, वातविध्वंस, नागगुटीका तथा स्वासकुठार में वत्सनाभ पड़ता है। सितोपलादि तथा तालीसादि में त्वक् (दालचीनी) पड़ता है और कनक सुन्दर में धतूर पड़ता है। ये सभी बात कफ शामक, स्रोतोरोध को दूर करने वाले सोथघ्न कर्म करने वाले होते हैं। इनके अन्दर रहने वाले कार्यकरतत्व नासिका रक्त तथा शरीरगत रक्तसंचार को बढ़ाकर अवरोध को तथा एक स्थानस्थ मलों को निकालते हैं। मल्ल, प्रवाल, माक्षिक आदि से सौम्य प्रभाव पड़ता है, पैत्तिक लक्षण शांत होते हैं। अतएव प्रतिश्याय की चिकित्सा में इन औषधियों का प्रयोग अवस्थानुसार करते हैं।
त्रिभुवनकीति, वातविध्वंस, नागगुटीका तथा स्वासकुठार में वत्सनाभ पड़ता है। सितोपलादि तथा तालीसादि में त्वक् (दालचीनी) पड़ता है और कनक सुन्दर में धतूर पड़ता है। ये सभी बात कफ शामक, स्रोतोरोध को दूर करने वाले सोथघ्न कर्म करने वाले होते हैं। इनके अन्दर रहने वाले कार्यकरतत्व नासिका रक्त तथा शरीरगत रक्तसंचार को बढ़ाकर अवरोध को तथा एक स्थानस्थ मलों को निकालते हैं। मल्ल, प्रवाल, माक्षिक आदि से
सौम्य प्रभाव पड़ता है, पैत्तिक लक्षण शांत होते हैं। अतएव प्रतिश्याय की चिकित्सा में इन औषधियों का प्रयोग अवस्थानुसार करते हैं।
प्रतिश्याय के लिए पथ्य
यव,कुलत्थ,मुद्गयूष,जांगल मांसरस,बैंगन,शिग्रु,लहसुन, शुण्ठी,आर्द्रक,मेथी,लौकी,पालक,टमाटर,पपीता,सन्तरा,आम,अंगूर ।
प्रतिश्याय के लिए अपथ्य
स्नान,वेगधारण,भूमिशय्या,शीत जल,क्रोध,मैथुन,चिन्ता,शोक, नवमद्य,आनूपमांस,बर्फ,दिवास्वप्न,रात्रिजागरण ।
Explore an in-depth research paper on A…
Telepathy क्या होता है इस विषय में अधिक…
Top-Rated Ayurveda Doctor Near Me in Ja…
यदि आप भी भारत सरकार Skill India nsdc द…
Ayurveda Marma therapy is for balancing…
Panchakarma treatment के विषय में आज हम…
Non-BAMS students who have been working…
Ayurveda Beginners को आयुर्वेदिक विषय स…
Blood pressure जड् से खत्म होगा यदि आप …
Ayurveda online course के बारे में सोच …
Nadi Vaidya बनकर समाज में नाड़ी परीक्षण…
tapyadi loha : ताप्यादि लोह मेरा सबसे प…
Bnys (bachelor of naturopathy and yogic…
Semicarpol या Semecarpus anacardium इस …
Explore the pulse diagnosis devic…
At [Ayushyogi], we believe in the trans…
मिर्गी के रोगियों को परहेज के लिए इन वि…
चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेदिक आवरण के…
Pitta Dosa is a term used in Ayurveda t…
Epilepsy is a chronic neurological diso…
Nadi pariksha:-Guru Dronacharya ji, who…
Easy way to understand Ayurvedic slokas…
alopecia areata treatment in Hindi इन्द…
100 Epilepsy patient के ऊपर आयुर्वेदिक …
how nature affects herbs: deep relation…
If a Yoga teacher also studies Ayurveda…
Dashmularishta के अनेक फायदे आपने जरूर …
Ayurveda online course for beginners. A…
there are three doshas, Kapha, Pitta, a…
Nabaz Dekhne ka Tarika सीखने के लिए आपक…
Ayurvedic Dietician की मांग दुनिया में …
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को हिंदू धर्मावलं…
Indian Famous Nadi Vaidya was asked abo…
Medical astrology online course:- Do yo…
Nadi vaidya Certificate Course in Nepal…
Epilepsy Treatment संभव है। Epilepsy जि…
Mirgi ka dora:-अपस्मार चिकित्सा विधि &b…
Prakriti pariksha आयुर्वेद का महत्वपूर्…
CCAT Course (Certificate course in Ayur…
Rakta Mokshan:- Rakta mokshna चिकि…
50th,Charakokta Mahakashaya Articles 50…
Advance Nadi Pariksha Course सीखने के इ…
Diabetes Mellitus मधुमेह और प्रमेह क्या…
सभी रोगों का नामाकरण करना सम्भव नहीं हो…
Pulse diagnosis course:-To learn …
About:- pulse diagnosis course:- p…
Swedopag mahakashaya स्…
स्नेहोपग महाकषाय 50 महाकषाय मध्ये सवसे …
Dhatu Bikar विकारो धातुवैषम्यम्: &…
Shukrajanan Mahakasaya शुक्र…
Stanyajanana Rasayanam चरक संहिता…
Vishaghna Mahakashaya:- विषघ्न महाकषाय …
50th'Charak Mahakasaya;- इस आर्टिकल…
Kanthya Mahakashaya:- कण्ठ्य महाकषाय क्…
What is Balya Mahakashaya:-बल्य महाकषाय…
Deepaniya Mahakashaya:- दीपनीय महाकषाय …
Doot Nadi Pariksha दूत नाड़ी परीक्षण वि…
Sandhaniya Mahakashaya संधानीय महाकषाय,…
Bhedaneeya mahakasaya भेदनीय महाकषाय ले…
मिर्गी का अचूक इलाज के साथ Mirgi ke tot…
Lekhaniya Mahakashaya कफ के परमाणुओं को…
bruhaniya Mahakashaya कुपोषण नाशक मांस …
Jivniya Mahakashaya जीवनीय महाकाय …
Nadi parikcha Book Pdf: pulse dia…
Mirgi ka ilaj आयुर्वेद से करें।ऑपरेशन भ…
Panchkarm Vamana therapy आयुर्वेदिक चिक…
Indigestion Causes समय से पहले भोज…
Nadi Pariksha course:- Ayushyogi …
आइए rabies क्या है | इसका कारण लक…
Diploma in Naturopathy and Yogic Scienc…
Vedic Medical astrology द्वारा हम कैसे …
Feeble lung pulse को आयुर्वेद में कमजोर…
जब हम किसी सद्गुरु के चरणों में सरणापन…
New born baby massage oil बनाने और अलग-…
mirgi ke rogi: मिर्गी के रोगियों क…
अगस्ति या अगस्त्य (वैज्ञानिक नाम: Sesba…
भोजन के चरण बद्ध पाचन के लिए जो क्रम आय…
malkangani क्या है:- what is jyot…
अपने हेतुओं से उत्पन्न दोष या व्याधि को…
चरक संहिता को महर्षि चरक ने संस्कृत भा…
अगर आप भी Nadi pariksha online course क…
Mirgi की आयुर्वेदिक दवा के रूप में प्…
आरोग्यवर्धिनी वटी: मांसवह स्रोतस और मेद…
Sitopaladi वात वाहिनी नाड़ियों पर…
अगर हम आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से दे…
Introduction
यदि चिकित्सक के पास…