जब हम किसी सद्गुरु के चरणों में सरणापन्न होकर कुछ विषय को सीखने का मन बनाते हैं तो आश्चर्यजनक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि गुरु
आयुर्वेद के सिद्धांत पढ़ने के बाद नाड़ी परीक्षण Colon_Organ_Pulse की गहराई को समझना आसान होता है आज हम इस बेहद गंभीर आत्मज्ञान बताया जाने वाला नाड़ी परीक्षण के विषय में विस्तार से बात करेंगे।
अपने अनुभव से प्राप्त ज्ञान को भी विषय के साथ जोड़कर बताने की कृपा करते हैं।
Organ Pulse.
किसी आयुर्वेदिक चिकित्सकों को इस बात को याद करते ही गौरव हो जाता होगा कि हमारे पास एक ऐसी विधि और ज्ञान का स्रोत है जिसकी बदौलत हम जिस MRI,EEG,ECT आदि महंगे संसाधनों से जिन शारीरिक अवयवों के विकारों को कभी-कभी सही विधि से नहीं पकड़ पाते उस Colon_Organ_Pulse के सूक्ष्म रोग को भी साधारण nadi parikshan bidhi को सीखने के बाद वह Colon_Organ_Pulse के रोग अपने तीन उंगली से ही पकड़ लेते हैं।
ऐसी ही परम दिव्य और दुर्लभ नाड़ी परीक्षण विधि को सीखना और आप सभी लोगों को सिखाना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है।
क्या आप भी नाडी़ परीक्षण सिखना चाहते है?
जब हम नाडी़ के माध्यम से धातुओं को समझते हैं जैसे अनामिका उंगली के प्रॉक्सिमल कर्वेचर में रस धातु और डिस्टल कर्वेचर में रक्त धातु को देखते हैं ऐसे ही मध्यमा उंगली के प्रॉक्सिमल कर्वेचर में मांस धातु और डिस्टल कर्वेचर में मेद धातु देखेंगे। तर्जनी उंगली के प्रॉक्सिमल कर्वेचर मैं अस्थि धातु और डिस्टल कर्वेचर में मज्जा धातु देखेंगे सभी उंगली के मिडिल कर्वेचर में शुक्र और आर्तव को देखा जाता है।
ध्यान देना इसे हम तीन उंगली को बरोबर जन्म प्रकृति तक जाने के बाद थोड़ा सा बरोबर तीन उंगलियों को थोड़ा सा रिलीज करने से वहां हमें धातु के बारे में पता चलता है।
यदि आप विधि से नाडी़ परीक्षण सीखेंगे तो यह सभी वातें समझने में आसान होगा
जब हम नाड़ी परीक्षण के माध्यम से यह जान लेते हैं कि अमुक व्यक्ति के शरीर में कौन सा दोष प्रबल रूप से खराब हो रखा है उसके बाद उस दोस्त ने किस धातु को खराब किया है कितना नोट हो जाने के बाद अब यह समझना है कि वह Organ किन किन धातुओं के सहयोग से निर्माण हुआ है इतना जान लेने के बाद आपके लिए बेहद आसान हो जाएगा की अब धातु परीक्षण हो जाने के बाद हमें किस ऑर्गन को देखने के लिए Organ pulse के इस्तेमाल करना है।
रक्त धातु और मेद धातु इन दोनों के प्रसाद भाग से बना हुआ है किडनी यानी कि जब भी कभी आपको एक साथ रक्त और मेद धातु नाडी़ के माध्यम से दिखे तो अपना ध्यान किडनी के तरफ जानी चाहिए या Organ पर देखते वक्त किडनी ऑर्गन में ध्यान देना चाहिए।
जाने testicle का निर्माण कैसे होता है।
मांसासृक्कफमेद प्रसादात् बृषणो(testicle)
यानी मांस रक्त कफ और मेद यह सभी किसी कारणवश बिगड़ते हैं तो नाडी़ में यह स्पाइक आपको धातु लेवल में दिखेगा यहां से आप अंदाज लगा सकते हो कि उसके अंडाशय में कुछ समस्या हो सकता है।
ऊपर बताए गए सभी धातु जल और पृथ्वी महाभूत प्रधान धातु है। यह कफ दोष के बिगड़ने से ही इन धातुओं में विकार उत्पन्न होता है।
रक्त और कफ के प्रसाद भाग से हृदय का निर्माण होता है हालांकि कफ खुद से रस धातु का मल है मगर रस से रक्त बनने के क्रम में निकलने वाला परमाणु हृदय निर्माण में भी सहयोगी होते हैं।
आयुर्वेदिक ग्रंथों के मुताबिक शुद्ध रक्त से ही लीवर और स्प्लिन का निर्माण होता है।
यदि आपको जन्म प्रकृति दोष विकृति मैं पित्त का विकार दिखता है। और धातु में भी रक्त धातु में दोष दिखाई देता है तो निश्चित है कि लिवर और किडनी में समस्या है जब आप Organ पल्स देखने जाएंगे तो लीवर और किडनी में विशेष सावधानी पूर्वक नाड़ी परीक्षण करें।
रस धातु से तुरंत तैयार हुआ नवीन रक्त को ही सोडित इस शब्द से संबोधन किया जाता है।
आहार रस से शुद्ध और ताजा रक्त बनता है । जैसे ऊपर बताया गया है कि वही ताजा रक्त से उत्पन्न फेन जिसे हम बुलबुला कह सकते हैं द्वारा लॉन्गस् का निर्माण होता है।
h4b>शोणित किट्ट प्रभवः उण्डुकः।
उण्डुकः का मतलब लार्ज इंटेस्टाइन का कोना मलद्वार में जाकर समाप्त होता है उसी लार्ज इंटेस्टाइन का दूसरा कोना एक सर्प के पूछ जैसा पेट के लेफ्ट साइड में होता है उसे ही उण्डुकः इस शब्द से जाना जाता है।
मेदसःस्नेहमादाय सिरास्नायुत्वमाप्नूयात्।
मेद धातु से उत्पन्न स्नेह यानी चिकनाहट से शरीर के शिरा और स्नायुवों का निर्माण हुआ है जब भी कभी धातु क्षय के कारण मेद धातु नष्ट होने शुरू हो जाते हैं तो शरीर में शिरा और स्नायुओं में कमजोरी आ जाती है।
शुद्ध और नवीन मांस धातु से उत्पन्न स्नेह यानी चिकना पदार्थ से शरीर में वसा का निर्माण होता है।
इस प्रकार हमने देखा कि किस तरह से रस रक्त आदि धातुओं से शरीर का निर्माण होता है। जब हम नाड़ी परीक्षण द्वारा किसी भी ऑर्गन को समझने का प्रयास करते हैं तो हमें यह जानकारी होना जरूरी होता है कि वह Organ एक,दो या दो से अधिक धातु के सहयोग से निर्माण हुआ है। क्रमबद्ध तरीका से यदि हम दोष धातु को देखते हुए Organ देखने के लिए उद्यत होंगे तो निश्चित हमें कमजोर ऑर्गन समझ में आएगा।
Nadi pariksha करते वक्त जब हम Orgen pulse को देखने के लिए जाते हैं तो सबसे पहले। रोगी के राइट हैंड के इंडेक्स फिंगर के सुपरफिशियली Colon pulse के बारे में जानकारी मिलती है। colon यानी बड़ी आंत जहां पर आहार द्रव्यों का पाचन हो जाने, समान वायु द्वारा सार्किट विभजन होजाने और स्मॉल इंटेस्टाइन द्वारा किट्ट भाग से भी रसों का एब्जेक्शन हो जाने के बाद बड़ी आंत मे पहुंच कर वही अन्न मल रूप में परिवर्तित हो जाता है। sub dosa के आधार पर इस जगह में अपान वायु का विशेष कार्य रहता है.
नाड़ी परीक्षण करते वक्त परीक्षक को सावधानीपूर्वक रोगी के राइट हैंड में अपने इंडेक्स फिंगर को लगाकर सबसे पहले जन्म प्रकृति तक जाना है उसके बाद धीरे-धीरे अपने इंडेक्स फिंगर को रिलीज करते हुए सुपरफिशियली आना है उसी जगह में आपको कोलन के बारे में विचार करना है.
यदि आपके Colon pulse की जगह में कमजोर पल्सेशन महसूस होती है। अब यहां बहुत सारे लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि कमजोर यानी क्या?
इसीलिए स्पष्ट करता चलूं की यदि आपको कोलन वाली पॉइंट में आकाश महाभूत स्पाइक में दिखता है।
और स्पष्ट करता चलूं।
colonवाली points में जो पल्सेशन आपको महसूस हो रही है उसमें मंद गति भी देखनी चाहिए उसका बल भी कमजोर दिखना चाहिए और सबसे बड़ी बात colon वाली पॉइंट के ऊपर उंगली आने पर उंगली के नीचे से गुजरता हुआ नाड़ी का बैग कभी धीरे रुक कर या टूटता हुआ कुछ असहज गति से आगे बढ़ता हुआ या वहीं स्थिर होता हुआ नाड़ी आपको स्पष्ट कोलन की कमजोरी को बताने के लिए तत्पर रहता है।
शरीर कमजोर और टूटते हुए निकलने वाले बाइक महसूस होने पर ही अपना ध्यान colon pulse की कमजोरी के तरफ जानी चाहिए।
नाड़ी परीक्षण करते हुए आप किसी व्यक्ति के राइट हैंड में अपना 3 उंगली को रखेंगे। सावधानीपूर्वक आप अपने इंडेक्स फिंगर को सुपरफिशियली रखिए। अब उसी तर्जनी उंगली के नीचे बीचोबीच (मिडल कर्वेचर) मे कमजोर स्पाइक दिखे तो यह बड़ी आत में पित्त का प्रभाव हो रहा है ऐसा समझना चाहिए।
जैसे ही आपको आपके तर्जनी उंगली के मिडिल कर्वेचर में टूटता हुआ कमजोर गति से प्रभाहीत होते हुए नारी को महसूस करेंगे तो रोगी के जिह्वा को जरुर देखना है रोगी के युवा को देखने पर आपको जीव के साइड में कुछ लाल लाल से दाने जैसा दिखेगा यहां से समझ लेना कि इसके बड़ी आंत में पित्त का प्रभाव है।
पित्त दोष द्वारा प्रभावित रोगी के बड़ी आत जिसे कोलोन कहा जाता है यह jo Organ है यह वायु का मुख्य निवास स्थान है | यह जगह में अपान वायु का निवास है पित्त द्वारा प्रभावित कोलोन व्यक्ति को डिसेंट्री जैसे व्याधि देगा।
कोलोन यदि पित्त दोष द्वारा पीड़ित होगा तो निम्न प्रकार के व्याधि को देता है।
1.Excess pitta in the colon.
2.colitis
3.Diverticulitis
4.Dysentery
5.Appendicitis
6.hemorrhoids
8.irritable bowel syndrome.
१. कोलाइटिस का कारण लक्षण और परिचय
इसमे दस्त और अक्सर खून या मवाद के साथ, पेट में दर्द और ऐठन मलासय का दर्द सौच की तीव्र इच्छा वजन कम होना अधिक थकान होना आदि होता है।
पेट में विशेष दर्द, कब्ज,दस्त, कभी-कभी बड़ी आंत से मूत्राशय तक सूजन फैलता है। क्रॉनिक स्थिति में उल्टी कमजोरी भूख की कमी वजन घटने जैसी स्थिति होती है.।
3. डिसेंट्री का कारण लक्षण और परिचय।
इसे पेचिश (आंव) कह सकते हैं। खूनी दस्त पेट में दर्द ऐठन बुखार और स्वस्थ महसूस ना करना भी होता है। शरीर में पानी की कमी होना।
इसमें संक्रमण या सूजन के कारण भयंकर पेट दर्द होता है जो नाभि से शुरू होकर पेट के दाएं तरफ नीचे के हिस्से में जाता है उल्टी बुखार भूख ना लगना जैसे लक्षणों के साथ ऊपर नीचे कूदते वक्त चुवने वाला पेट दर्द होता है।
5.बवासीर का कारण लक्षण और परिचय
बवासीर रोग - जिसे पाइल्स भी कहा जाता है - में गुदा व मलाशय में मौजूद नसों में सूजन व तनाव आ जाता है। आमतौर पर यह गुदा व मलाशय में मौजूद नसों का “वैरिकोज वेन्स” रोग होता है। बवासीर मलाशय के अंदरुनी हिस्से या गुदा के बाहरी हिस्से में हो सकता है।
बवासीर कई कारणों से हो सकता है, हालांकि इसके सटीक कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है। यह मल त्याग करने के दौरान अधिक जोर लगाने के कारण भी हो सकता है या गर्भावस्था के दौरान गुदा की नसों में दबाव बढ़ने के कारण भी हो सकता है।
बवासीर के लक्षण भी अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं, जो थोड़ी बहुत खुजली या तकलीफ से लेकर गुदा से खून आना या गुदा का कुछ हिस्सा बाहर की तरफ निकल जाना आदि तक हो सकते हैं। बवासीर के लक्षण इसकी गंभीरता पर निर्भर करते हैं।
महिलाओं के गर्भाशय से योनि के बीच में दीवारों में पाए जाने वाला ट्यूमर या रसौली टाइप जैसा दृश्य जिसे पालिप्स कहा जाता है.इसके वजह से अनियमित मासिक धर्म अधिक रक्तस्राव रजोनिवृत्ति योनि में रक्त स्राब इसके कारण गर्भधारण करने में दिक्कत आ जाती है.।
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम नामक व्याधि होने पर रोगी के पेट में सूजन दर्द मरोड़ गैस कब्ज डायरिया आदि होते हैं। यह व्याधि भी हम नाड़ी परीक्षण द्वारा जान सकते हैं ऊपर बताए तरीका से यदि आप रोगी के राइट हैंड में अपने तर्जनी उंगली के नीचे सुपरफिशियली मिडल कर्वेचर में कमजोर स्पाइक हमें इरिटेबल बाउल सिंड्रोम को संकेत देता है।
अब हम बात करेंगे बड़ी आंत जिसे कोलोन कहा जाता है मैं यदि वायु का प्रभाव होगा तो उसे नाड़ी में कैसे देखें और वात दोष द्वारा प्रभावित colon किस तरह की समस्या रोगी को दिखाता है.।
वायु में रुक्ष शित लघु आदि गुण होते हैं। इन्हीं गुणों के बदौलत वाता दोषा संपूर्ण शरीर में अपना कार्य करता है लेकिन किसी कारण बस यही वात दोष पर कुपित हो जाती है तो विविध प्रकार के व्याधि उत्पन्न कर देता है नाड़ी परीक्षण के संदर्भ में जब हम ऑर्गन पल्स को समझने के लिए प्रयत्न करते हैं। तो रोगी के राइट हैंड में अपना तर्जनी उंगली जिसके नीचे वात दोष को देखा जाता है मैं अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। superficially यहां एक अति कमजोर स्पाइक जो distal curvature की ओर आपको महसूस होने लगे तो अवधारणा बनाइए कि यह कोलन में वायु का प्रभाव है। क्योंकि कोलन मैं होने वाली हर गतिविधियों को हम जिह्वा के माध्यम से भी देख सकते हैं ऐसी स्थिति में अगर आपको रोगी के जिह्वा परीक्षण करेंगे तो जीभ में आपको रुक्षता, दरारे आदि दिखेंगे इन सभी लक्षणों से आपको जान लेना चाहिए कि रोगी के कोलोन में वायु का रुक्ष आदि प्रभाव है।
जब कोलोन में अधिक मात्रा में आकाश और वात महाभूत का प्रभाव होगा तो इसे हम वायु द्वारा पीड़ित colon कहकर जान सकते हैं।
नीचे कुछ व्याधि बता रहा हूं यह सभी कोलोन में वायु के अधिक प्रभाव होने के फलस्वरूप शरीर में दिखता है।
1.Gases
2.constipation
3.Diverticulosis
4.Fissure
5.Fistula
जैसे की संदर्भवस यहां देख रहे हैं कि कोलन में वायु के रुक्ष आदि गुण बढ़ जाने से पेट में गैस बन जाता है। अपान क्षेत्र में दोषों के द्वारा अवरोध पैदा होने के फलस्वरूप वायु मलद्वार से बाहर निकलने के बजाय दुबारा पीछे की ओर लौटना शुरू कर देता है मंदाग्नि ही इस स्थिति का मुख्य कारण है।
वायु के शित,खर,रुक्ष गुणों से प्रभावित कोलोन मे कफ का mucus को सुखा देता है। लुब्रिकेशन ना होने की वजह से अपान क्षेत्र के मल आगे खिसक नहीं पाता क्योंकि वायु भी प्रकुपित अवस्था मे होता है फलस्वरूप व्यक्ति को कॉन्स्टिपेशन होना शुरू हो जाता है।
डायवर्टिकुलाइटिस- क्या होता है.
आंतों की दीवारों पर बने डायवर्टिकुला नाम के छोटे-छोटे पाउच में संक्रमण फैल जाता है या फिर सूजन आ जाती है। मुख्य रूप से इसी को डायवर्टिकुलाइटिस के करके जाना जाता है. पाचन तंत्र क्षेत्र में इस प्रकार का विकृति व्यक्ति के शरीर में विविध प्रकार से व्याधि को उत्पन्न करने के लिए तैयार रहता है।
फिशर क्या होता है।
फिशर की बीमारी में गुदा नलिका में एक प्रकार की दरार आ जाती है। जिन्हें कब्ज होता है या कठोर मल निकलता है, उन्हें यह दरार आ जाती है। फिस्टुला की तरह ही यह भी एक दर्दनाक बीमारी है। फिशर होने पर मल त्याग करना बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि दर्द खूब बढ़ जाता है।
फिस्टुला क्या होता है।
गुदा के मध्य भाग में गुदा ग्रंथियां होती हैं, जिनमें संक्रमण हो जाती हैं जिससे और गुदा पे फोड़ा हो जाता है, जिससे मवाद निकलने लगता है। फिस्टुला संक्रमित ग्रंथि को फोड़ा से जोड़ने वाला मार्ग है।
यह रेडिएशन, कैंसर, वार्ट्स, ट्रामा, क्रोहन रोग आदि के कारण हो सकता है
यह मोटापे और लंबे समय तक बैठने से भी जुड़ा हो सकता है
मुहाने से मवाद आना, सूजन, दर्दनाक और लाल के रूप पहचाना जा सकता है
एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया जा सकता है।
कोलन से संबंधित रोगों में अक्सर प्रयोग किया जाने वाला आयुर्वेदिक दवाई।
बड़ी आंत यानी कोलन से संबंधित किसी भी प्रकार के व्याधि में नीचे दिए गए साधारण आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करके रोगी को सुख पहुंचा सकते हैं।
1. त्रिफला
2. सत ईसबगोल
3. कस्टर्ड ऑयल
4. अजवाइन
5.हींग
यह सभी द्रव्य अग्नि वर्धक वात अनुलोमा दीपन पाचन आदि क्रियाएं करने वाले बेहतरीन आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है इनका प्रयोग किसी भी प्रकार के कफ पित्त वात द्वारा संक्रमित कोलन के ऊपर कर सकते हैं।
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प्रशिक्षण समय प्रति दिवस सायं 7:00 से 8:00 के बीच
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