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Vedic Medical astrology | संपूर्ण वैदिक मेडिकल एस्ट्रोलॉजी सीखे आसान भाषा में |

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Vedic Medical astrology द्वारा हम कैसे रोग परीक्षण कर सकते हैं ।इस पोस्ट में हम संपूर्ण मेडिकल एस्ट्रोलॉजी सीखने के लिए ज्योतिष के तमाम बिंदुओं के ऊपर चर्चा करेंगे।

 

यदि आप Live Vedic Medical astrology सीखना चाहते हैं तो नीचे दिए गए link me click करके class में प्रवेश कर सकते हैं।

    • Vedic Medical astrology  से संबंधित विशेष जानकारी जिसे आप हमारे इस blog के माध्यम से पढ़ पाएंगे।

 

गणानात् सरस्वती रविशुक्र वृहस्पति।

पंचैतान् संस्मरेत् नित्यं वेद वाणी प्रवर्तयेत्।।

 

 

 Learn Vedic Medical astrology

गणेश सरस्वती सभी ग्रह अपने पितृ देवताओं को स्मरण करके हम ज्योतिष का वह सिद्धांत जो रोग परीक्षण के लिए जाना जाता है का निरूपण करते हैं।

    विषय सूची

1. पंचमहाभूत ग्रह और शरीर के साथ संबंध

2.ग्रह,नक्षत्र,राशि,और द्वादश भाव का सामान्य परिचय

3.कौन सा नक्षत्र किस प्रकार का रोग देता है

4.राशि परिचय और राशि अनुसार रोगों का विचार

5.ग्रहों और भाव का वलावल तथा ग्रहोंका परिचय

6.कुण्डली देखने का खास सूत्र

7.सप्तवर्गीय कुंडली देखने का तरीका

8.कुंडली निर्माण विधि

9.ग्रह शान्ति उपाय(जैसे मृत्युंजय का अनेक प्रकार है तो कव कौन सा मंत्र का चयन करे,मंत्रो का चयन भी दवाई की तरह ही होना चाहिए।

10.मूहूर्त विचार

 

 

1. पंचमहाभूत ग्रह और शरीर के साथ संबंध

.ज्योतिष और आयुर्वेद समन्वय सम्वन्धित सामान्य जान्कारी|

 

आकाश

वृहस्पति

+वायु

(शनि)

=वात दोष

अग्नि

(सूर्य/मंगल)

+जल

(चन्द्र/शुक्र

पित्त दोष

जल

(चन्द्र/शुक्र)

+पृथ्वी

(वुध)

कफ दोष

 

 

 

         मधुर्यादी रसों का ग्रहों के साथ तालमेल

           पंच तत्वों को रिप्रेजेंट करने वाले ग्रहण

     पृथ्वी

 (वुध)

+ अग्नि

( सूर्य+ मंगल)

-अम्ल रस

(कफ+पित्त वृद्घि-वात मन्द)

-{जल+पृथ्वी}

 

 

 

मधुर रस

कफ वृद्धि/,पित्त,वात मन्द

(जल अग्नि

 

 

 

लवण रस

पित्त कफ वृद्धि/ वात मन्द

अग्नि वायु

 

 

 

कटु रस

वात पित्त वृद्धि/ कफ मन्द

वायु आकाश

 

 

 

तिक्त रस

वात वृद्धि/कफ पित्त मन्द

वायु पृथ्वी

 

 

 

-कषाय रस

वात वृद्धि /कफ पित्त मन्द

 

चंद्रकला एवं रोग

लवण मिश्रित समुंद्री जल में जिस प्रकार पूर्णमासी के दिन ज्वार भाटा उत्पन्न होता है उसी प्रकार इंसान के शरीर में विद्यमान  रक्त मैं भी विभिन्न प्रकार के लवण और विविध प्रकार के रसायन उपलब्ध है फलस्वरूप पृथ्वी के सबसे निकटतम दूरी पर अवस्थित चंद्रमा का हमारे रक्त कोशिकाओं में प्रभाव ना हो ऐसा हो नहीं सकता। मिर्गी का दौरा, पागलपन,ओसीडी जैसे तमाम रोग जिनका संबंध मन से जुड़ा हुआ है अमावस्या पूर्णिमासी और अष्टमी के ही दिनों में ज्यादा देखा जाता है और उसके होने के पीछे भी वही चंद्रमा का नेगेटिव किरण है।

 

2.ग्रह,नक्षत्र,राशि,और द्वादश भाव का सामान्य परिचय

नक्षत्र विचार

आकाशगंगा में अनंन्त तारे हैं जो पृथ्वी से बहुत दूर है। जो सूर्य से भी बड़े हैं।

प्रकाश 1 सेकंड में 3 लाख किलोमीटर चलता है। इस गति से 1 वर्ष में वह जितना चल पाता है उसे एक प्रकाश वर्ष कहा जाता है।

कुछ तारे तो प्रकाश वर्ष के मापदंड से भी बहुत आगे है उसे नापने के लिए पार सेक बोलते हैं एक पारसेक 3.259 प्रकाश वर्ष के बराबर होता है।

 

सूर्य के किरण  को पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 16 सेकंड का वक्त लगता है।

 आर्द्रा नक्षत्र पृथ्वी से 240 प्रकाश वर्ष दूर है

चित्रा नक्षत्र भी 168 प्रकाश वर्ष दूर है

मघा नक्षत्र 85 प्रकाश वर्ष दूर है

रोहिणी नक्षत्र 68 प्रकाश वर्ष दूर है।

नक्षत्र

नक्षत्र स्वामी देवता

 नक्षत्रों के स्वामी ग्रह

अश्विनी

 अश्विनी कुमार

केतु

 भरणी

काल

 शुक्र

 कृतिका

   अग्नि

सूर्य

 रोहिणी

 ब्रह्मा

 चंद्र

 मृगाशीरा

चंद्रमा

 मंगल

 आर्द्रा

रूद्र

 राहु

 पुनर्वसु

अदिति

 बृहस्पति

 पुष्य

बृहस्पति

 शनि

अष्लेषा

 सर्प

 बुध

 मघा

 पितर

 केतु

पूर्वाफाल्गुनी

 भग

 शुक्र

  उत्तराफाल्गुनी

 अर्यमा

सूर्य

 हस्त

  सूर्य

चंद्र

चित्रा

 विश्वकर्मा

 मंगल

  स्वाति

  पवन

 राहु

 विशाखा

 शुक्राग्नि

बृहस्पति

 अनुराधा

  मित्र

 शनि

 जेष्ठा

इंद्रदेव

 बुध

 मूल

 निरीती

 केतु

, पूर्वषाढा

 जल

शुक्र

 [ उत्तराखाडा

 

सूर्य

श्रवण

विष्णु

चंद्र

धनिष्ठा

वसु

मंगल

  शताभिषा

वरुण

 राहु

  पूर्वाभाद्रपद

अजैकपाद

बृहस्पति

उत्तर

 भाद्रपद

  अहिरबुध्न्य

 शनि

  रेवती

  पूसा

 बुध

 

3.कौन सा नक्षत्र किस प्रकार का रोग देता है|

अश्विनी

 अर्धांग बात,अनिद्रा मतिभ्रम रोगों को देता है

भरणी

 तीव्र ज्वर दर्द शिथिलता या मूर्छा देता है

कृतिका

दाह, उदर ज्वर तीव्र वेदना अनिद्रा नेत्र रोग देता है

रोहिणी

सिर दर्द उन्माद प्रलाप पेट में दर्द देता है

मृगाशीरा

चर्म रोग और एलर्जी देता है

 आर्द्रा

 वायु विकार विकार कफ के रोग देता है

पुनर्वसु

कमर दर्द सिर में दर्द गुदाभ्रंश रोग देता है

पुष्य

ज्वर दर्द अचानक पीड़ा देता है

आश्लेषा

सर्वांग पीड़ा मृत्यु तुल्य कष्ट रोग सर्पदंश देता है

 मघा

 वायु विकार उदर विकार मुख रोग देता है

 पूर्वाफाल्गुनी

कर्ण रोग शिरो रोग शरीर में वेदना देता है

उत्तराफाल्गुनी

पित्त ज्वर अस्थि भंग सर्वांङ्गपीड़ा देता है

 हस्त

पेट में दर्द और मंदाग्नि देता है

 चित्रा

 कष्टकारी दुर्घटना से पीडा देता है

स्वाति

 दीर्घ रोग असाध्य रोग जिसका कोई शीघ्र इलाज नहीं होता

विशाखा

वातव्याधि मेदो रोग कुक्षीशुल सर्वांग पीड़ा

अनुराधा

  तिव्रज्वर सिरदर्द और संक्रामक व्याधि देता है

जेष्ठा

 कम्प रोग विकलता  छाती का रोग देता है

मूल

 उदर रोग मुख रोग नेत्र रोग देता है।

 पूर्वषाढा

 मधुमेह धातुक्षय दुर्बलता गुप्त रोग देता है

उत्तराखाढा

उदर शूल कटि शूल देता है

 श्रवण

अतिसार हैजा मुत्रकृच्छ  संग्रहणी देता है

 

 धनिष्ठा

अमाशय वस्ती और गुर्दे का रोग देता है

शताभिषा

 वातज्वर सन्नीपात और विषम ज्वर देता है

पूर्वाभाद्रपद

बमन घवडाहट शूल और मानसिक रोग देता है

उत्तराभाद्रपद

 दांत मे ज्वर,वात ज्वर देता है

रेवती

मानसिक रोग अभीचार और वात रोग देता है।

 

 

राशि        

  नक्षत्र

  नाम का पहला अक्षर

मेष

अश्विनि, भरणी, कृतिका

चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो,

वृष        

कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा

, , , , वा, वी, वू, वे, वो

मिथुन

 

    मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु

का, की, कू, , , , के, को,

कर्क

पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा

ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो

सिंह

मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी

मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे

कन्या

उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा        ढो,

 पा, पी, पू, , , , पे, पो

तुला

चित्रा, स्वाती, विशाखा

रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते

वृश्चिक

विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा

तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू

धनु

मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा

ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे

मकर

उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा

भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी

कुंभ

घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद

गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा

मीन

पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती

दी, दू, , , , दे, दो, चा, ची

 

अभिजित समेत कुल 28  नक्षत्रों का वर्गीकरण सात भागों में किया गया है. जिन सात भागों में इन नक्षत्रों को बांटा गया है उस हरेक वर्ग को भी एक नाम दिया गया है जिसका वर्णन इस लेख में किया जा रहा है.

 

1) ध्रुव-स्थिर नक्षत्र |

 

इन नक्षत्रों की श्रेणी में उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद, रोहिणी नक्षत्र के साथ रविवार को रखा गया है. इन नक्षत्रों में स्थिर स्वभाव के कार्य जैसे मकान की नींव रखना, कुंआ खोदना, भवन निर्माण, उपनयन संस्कार, कृषि से जुड़े कार्य, नौकरी आरम्भ करना आदि आते हैं.

 

महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य मृदु नक्षत्रों में किए जाते हैं उन कार्यों को इन नक्षत्रों में भी किया जा सकता है.

 

2) चर अथवा चल नक्षत्र |

 

इसमें स्वाति नक्षत्र, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और सोमवार को लिया गया है. सभी चर अथवा चल स्वभाव के कार्य जैसे वाहन चलाना अथवा वाहन की सवारी करना, घुड़सवारी, हाथी की सवारी करना, यात्रा करना आदि ऐसे कार्य किए जाते हैं जिनमें गतिशीलता रहती है.

 

महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य क्षिप्र-लघु नक्षत्रों में किए जाते हैं उन कार्यों को भी इन नक्षत्रों में किया जा सकता है

 

3) उग्र-क्रूर नक्षत्र।

 

इसमें पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, मघा और मंगलवार का दिन शामिल किया गया है. आक्रामक स्वभाव के कार्य इन नक्षत्रों में किए जाते हैं. ह्त्या, विश्वासघात, अग्नि से संबंधित अशुभ कार्य, चोरी, विष देना, विष संबंधित दवाईयों पर खोज, शल्य चिकित्सा, हथियारों का क्रय-विक्रय, अथवा प्रयोग आदि सभी क्रूर प्रवृत्ति के कार्यों के लिए ये अनुकूल नक्षत्र माने गए हैं.

 

महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य दारुण-तीक्ष्ण नक्षत्रों में किए जा सकते हैं उन्हें इन नक्षत्रों में भी किया जा सकता है. ये नक्षत्र शुभ कार्यों के लिए सामान्यतः वर्जित माने जाते हैं.

 

4) मिश्र-साधारण नक्षत्र।

 

इस श्रेणी में विशाखा तथा कृत्तिका नक्षत्र और बुधवार का दिन लिया गया है. इसमें अग्नि संबंधित कार्य, धातुओं को गरम करके अथवा उन्हें गलाकर ढालने का काम, गैस संबंधित कार्य, सजाने-संवारने के कार्य, दवा निर्माण आदि के कार्य किए जाते हैं.

 

5) क्षिप्र-लघु नक्षत्र।

 

इसमें हस्त नक्षत्र, अश्विनी, पुष्य, अभिजित और बृहस्पतिवार का दिन लेते हैं. इन नक्षत्रों में दुकान का प्रारम्भ तथा निर्माण किया जाता है, विक्रय करने, शिक्षा का प्रारम्भ, गहने अथवा जवाहरात बनाने अथवा पहनने, मैत्री अथवा किसी से साझेदारी का काम, कला सीखना या दिखाने का काम, किसी नए काम को सीखने का काम इन नक्षत्रों में करना उपयुक्त माना गया है.

 

जो कार्य चल अथवा चर नक्षत्रों में किए जाते हैं उन्हें भी इन नक्षत्रों में किया जा सकता है.

 

6)  मृदु-मैत्र नक्षत्र |

 

इसमें मृगशिरा नक्षत्र, रेवती, चित्रा, अनुराधा और शुक्रवार का दिन शामिल किया गया है. गायन सीखना आरम्भ करना, संगीत सीखना, वस्त्र सिलवाने अथवा पहनने का काम, क्रीड़ा, खेल की बारीकियों को सीखने का काम, मित्र बनाने, गहने बनाने अथवा पहनने आदि का काम इन नक्षत्रों में किया जाता है.

 

जिन कार्यों को ध्रुव-स्थिर नक्षत्रों में किया जाता है उन सभी कार्यों को भी इन नक्षत्रों में किया जा सकता है.

 

7) तीक्ष्ण-दारुण नक्षत्र |

इनमें मूल नक्षत्र, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा और शनिवार का दिन शामिल किया गया है. इन तीक्ष्ण-दारुण नक्षत्र में तांत्रिक क्रियाएं, ह्त्या, काला जादू, आक्रामक मृत्यु तुल्य कृत्यों को करना, जानवरों को प्रशिक्षण देना तथा उन्हें वश में करना, साधना जैसे हठ योग आदि कार्य किए जाते हैं.

 

 

 

नक्षत्रों को उनकी दृष्टि के अनुसार भी बांटा गया है और उनका यह वर्गीकरण इस प्रकार से है :-

 

1) उर्ध्वमुखी नक्षत्र |

 

इसमें आर्द्रा, पुष्य, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, तीनों उत्तरा और रोहिणी नक्षत्र आते हैं. इन नक्षत्रों में बहुमंजिले भवन बनाना, घर बनाना, मंदिर निर्माण करना, उद्यान आदि बनाने का काम आरम्भ किया जाता है. इसके अतिरिक्त यह नक्षत्र उन सभी कार्यों के लिए अनुकूल होते हैं जिनमें ऊपर की ओर देखना पड़ता है.

 

2) अधोमुखी नक्षत्र |

 

इसमें मूल नक्षत्र, आश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, तीनों पूर्वा नक्षत्र, भरणी और मघा को लिया गया है. इन नक्षत्रों में भूमि से जुड़े कार्य जैसे कुँए बनाना, तालाब के लिए जमीन खोदना, नींव रखने के लिए जमीन की खुदाई करना, भूमि के नीचे के निर्माण कार्य, खदान का काम, जमीन के अंदर गंदे पानी की निकासी की खुदाई का काम आदि करना अनुकूल माना गया है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है ये नक्षत्र उन कार्यों के लिए अनुकूल है जिनमें नीचे की ओर देखा जाता है.

 

3) तिर्यङ्कमुखी नक्षत्र |

 

इसमें मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, अश्विनी और ज्येष्ठा नक्षत्र शामिल किए गए हैं. इन नक्षत्रों का मुख सीधा होता है जिस से इनकी दृष्टि सामने की ओर होती है. इन नक्षत्रों को यात्रा अथवा यात्रा संबंधित कार्यों के लिए शुभ माना जाता है. वाहन चलाना, वाहन में चढ़ना, सड़क निर्माण आदि ऐसे कार्यों के लिए ये नक्षत्र उपयुक्त माने गए हैं. वो सभी कार्य जिनमे सामने की ओर देखने की आवश्यकता होती है, इस नक्षत्र के अंतर्गत आते हैं.

 

 

योग

सूर्य और चंद्रमा के स्पष्ट स्थानों को जोड़कर तथा कलाएं बनाकर 800 का भाग देने पर गत योगों की संख्या निकल आती है। सूर्य और चंद्रमा के आधार पर योग का निर्माण होता है इसका संख्या 27 है|

 

विश्कम्भ प्रीति आयुष्मान सौभाग्य शोभन अतिगंड सुकर्मा धृति गंड वृद्धि ध्रुव व्याघात हर्षण वज्र सिद्धि व्यतिपात वरीयान परिघ शिव सिध्द साध्य,शुभ शुक्ल ब्रह्मा ऐन्द्र बैधृति

करण का नाम

तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं। अर्थात एक तिथि में दो कारण होते हैं। संपूर्ण करण का संख्या 11 है।

बालव बालव कौलव तैतिल गर वणिज विष्टि शकुनि चतुष्पद नाग किंस्तुघ्न।

 

 

4.राशि परिचय और राशि अनुसार रोगों का विचार

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मेष

चतुष्पाद

पृष्ठोदय

 रात्रि बली

 चर

क्रुर

विषम

पूर्व

 मंगल

वृष

चतुष्पाद

पृष्ठोदय

 रात्रि बली

 स्थिर

 सौम्य

 सम

दक्षिण

 शुक्र

 मिथुन

मनुष्य

 उभयोदय

 रात्रि बली

 उभय

क्रुर

विषम

पश्चिम

 बुध

कर्क

 जलचर/ जलचर

पृष्ठोदय

 रात्रि बली

चर

 सौम्य

 सम

  उत्तर

चंद्र

सिंह

चतुष्पाद

शीर्षोदय

दीवाबली

 स्थिर

क्रुर

विषम

पूर्व

सूर्य

कन्या

मनुष्य

शीर्षोदय

दीवाबली

 उभय

 सौम्य

 सम

दक्षिण

 बुध

 तुला

मनुष्य

शीर्षोदय

दीवाबली

चर

क्रुर

विषम

पश्चिम

 शुक्र

वृश्चिक

कीट

शीर्षोदय

दीवाबली

 स्थिर

 सौम्य

 सम

  उत्तर

 मंगल

धनु

मनुष्य,u.चतुष्पाद

पृष्ठोदय

 रात्रि बली

 उभय

क्रुर

विषम

पूर्व

 बृहस्पति

 मकर

P.चतुष्पाद u,जलचर

पृष्ठोदय

 रात्रि बली

चर

 सौम्य

 सम

दक्षिण

 शनि

कुंभ

मनुष्य

शीर्षोदय

दीवाबली

 स्थिर

क्रुर

विषम

पश्चिम

 शनि

मीन

 जलचर

 उभयोदय

दीवाबली

 उभय

 सौम्य

 सम

  उत्तर

 बृहस्पति

 

 

 

 

 

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