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Chronic Edema in Ayurveda : असाध्य शोथ: ESRD, Liver Cirrhosis, Heart Failure से तुलना

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सूजन (Edema) शरीर में तरल पदार्थ के असामान्य संचय का परिणाम है। आधुनिक चिकित्सा में यह हार्ट, लिवर, किडनी सहित कई गंभीर रोगों का लक्षण है। आयुर्वेद में इसे शोथ कहा गया है, और चरक संहिता चिकित्सा स्थान, अध्याय 12 में इसके कारण, सम्प्राप्ति, लक्षण और उपचार सिद्धांत स्पष्ट रूप से वर्णित हैं। जब यह स्थिति अत्यंत गंभीर हो जाती है और रोगी में विशेष जटिलताएं उत्पन्न होती हैं, तो इसे असाध्य शोथ कहा जाता है।

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आइए आज हम इस blog के माध्यम से चरक संहिता चिकित्सा स्थान अध्याय 12 में वर्णित श्वयथु चिकित्सा (असाध्य शोथ) को आधुनिक दृष्टिकोण से समझते हैं। आजकल रोगी अक्सर एलोपैथिक रिपोर्ट लेकर आते हैं, ऐसे में हमें इन अवस्थाओं को आयुर्वेदिक विचारों के साथ जोड़कर देखने और तुलना करने की क्षमता होनी चाहिए। इसमें हम सम्प्राप्ति, लक्षण, उपचार सिद्धांत और ESRD, Liver Cirrhosis, Heart Failure जैसी गंभीर आधुनिक स्थितियों से इसका तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।

 

निज शोथ के कारण – आयुर्वेदिक और आधुनिक दृष्टिकोण

आयुर्वेदिक दृष्टि से
आयुर्वेद में "निज शोथ" (आंतरिक कारणों से होने वाली सूजन) के प्रमुख कारण बताए गए हैं। जब कोई व्यक्ति वमन, विरेचन जैसे शोधन कर्म के बाद या किसी रोग या लंबे समय तक भोजन न करने के कारण अत्यधिक कृश (दुबला) और निर्बल हो जाता है, तब यदि वह क्षारयुक्त, अम्लीय, तीक्ष्ण, अत्यधिक उष्ण या भारी भोजन का सेवन करता है, तो यह सूजन को जन्म दे सकता है।
दही, अधपका अन्न, मिट्टी, अशुद्ध शाक, विरोधाभासी आहार, दूषित या कृत्रिम रूप से मिलावट किए गए अन्न का सेवन भी इसका कारण बनता है। इसके अलावा —

  • लंबे समय तक शारीरिक श्रम का अभाव

  • आंतरिक शोधन (वमन-विरेचन) या बाह्य शोधन (स्नान, मालिश आदि) की उपेक्षा

  • मर्मस्थानों पर चोट

  • प्रसव में जटिलता (मूढगर्भ)

  • रोगों की चिकित्सा में लापरवाही या अधूरा उपचार

ये सभी कारक "निज शोथ" उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।

आधुनिक चिकित्सा दृष्टिकोण से
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, सूजन (Inflammation) शरीर की एक जटिल प्रतिक्रिया है जो चोट, संक्रमण, या विषैले पदार्थों के कारण होती है। जब शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र (Immune System) किसी उत्तेजना को पहचानता है, तो प्रभावित क्षेत्र में रक्त प्रवाह और प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।
कुछ सामान्य कारण जो आयुर्वेद के कारणों से मेल खाते हैं—

  • पाचन विकार और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन

  • फूड पॉइजनिंग या दूषित भोजन का सेवन

  • एलर्जी रिएक्शन (कुछ अम्लीय या तीक्ष्ण पदार्थों से)

  • टिश्यू इंजरी (मर्म पर चोट)

  • पोस्ट-डिलीवरी इंफ्लेमेशन

  • असंतुलित डाइट और मिलावटी भोजन

  • मेटाबॉलिक सिंड्रोम में उत्पन्न लो-ग्रेड क्रॉनिक इंफ्लेमेशन

संयुक्त दृष्टिकोण
आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों इस बात पर सहमत हैं कि —

  1. अनुपयुक्त आहार-विहार (Unwholesome diet and lifestyle)

  2. शारीरिक शोधन की कमी (Detoxification neglect)

  3. चोट या संक्रमण

  4. अधूरा इलाज

सूजन के मूल कारण बन सकते हैं।
इसलिए समय पर सही उपचार, संतुलित आहार, और शरीर का आंतरिक एवं बाह्य शोधन — निज शोथ की रोकथाम और उपचार में अनिवार्य है।

 शोथ की सम्प्राप्ति (Pathogenesis in Ayurveda)

चरक संहिता के अनुसार

शोथ की उत्पत्ति तब होती है जब दूषित वायु, रक्तवाहिनी की बाहरी सिराओं में पहुँचकर कफ, रक्त और पित्त को दूषित करती है। यह विकृत कफ, रक्त और पित्त वायु के संचरण को अवरुद्ध कर देते हैं। अवरुद्ध वायु विभिन्न दिशाओं में फैलने की चेष्टा करती है और प्रभावित स्थान पर उभार  - edema उत्पन्न करती है।

वातज, पित्तज और कफज शोथ – आयुर्वेदिक एवं आधुनिक दृष्टिकोण

प्रकार – वातज शोथ

आयुर्वेदिक लक्षणअस्थिर, घटता-बढ़ता, त्वचा पतली-कठोर, लाल-काली, सुन्नपन, झनझनाहट, दिन में बढ़ना
आधुनिक तुल्यता – नर्व इन्फ्लेमेशन, न्यूरोपैथिक एडिमा, अस्थायी सूजन

प्रकार – पित्तज शोथ

आयुर्वेदिक लक्षण – कोमल, गंधयुक्त, पीला-काला रंग, जलन, लालिमा, ज्वर, प्यास, चक्कर, पसीना, पकना
आधुनिक तुल्यता – एक्यूट इन्फ्लेमेशन, इन्फेक्शन संबंधी सूजन, एलर्जिक रिएक्शन

प्रकार – कफज शोथ

आयुर्वेदिक लक्षण – भारी, स्थिर, श्वेत वर्ण, अरोचक, लारस्राव, अधिक निद्रा, वमन, मंदाग्नि, रात्रि में बढ़ना
आधुनिक तुल्यता – क्रॉनिक एडिमा, लिम्फैटिक कंजेशन, हाइपोथायरॉइडिज्म संबंधी सूजन

Chronic Edema in Ayurveda

 आधुनिक तुलना

  • रक्त व लसीका प्रवाह में रुकावट → Interstitial fluid का संचय

  • Vascular permeability बढ़ना → Inflammatory edema

  • Plasma protein की कमी → Hypoproteinemia-induced swelling

वातज, पित्तज और कफज शोथ – आयुर्वेदिक एवं आधुनिक दृष्टिकोण

चरक संहिता के लक्षण     आधुनिक दृष्टिकोण    
शोथ वाले स्थान में भारीपन Tissue fluid overload
शोथ का आकार बदलना (कभी कम, कभी अधिक) Pitting edema
गर्मी होना Inflammatory process
सिराओं का पतला होना Venous changes
रोंगटे खड़े होना Cutaneous response
अंगों में विवर्णता Poor circulation

 

असाध्य शोथ लक्षण आधुनिक रोग स्थिति
कृशता + शोथ Severe malnutrition, Kwashiorkor
वमन, अरुचि Liver failure, CKD
श्वास

Congestive heart failure 

ज्वर Sepsis, infective endocarditis
अतिसार Protein losing enteropathy
दौर्बल्य Chronic illness, cancer cachexia
मर्मस्थान में शोथ Brain edema, pericardial effusion
नसों का उभार Portal hypertension, DVT
पूरे शरीर में शोथ End-stage renal/cardiac/hepatic failure
पानी बहना Severe hypoproteinemia

 

आयुर्वेदिक उपचार सिद्धांत

 

शोथ का चिकित्सासूत्र – Ayurvedic Treatment Principle for Edema

चरक संहिता के अनुसार, शोथ की चिकित्सा करते समय वैद्य को निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए:

"रोगी के शारीरिक बल और रोग के बल का आकलन, दोष एक या अनेक हैं, वे साम (अमा युक्त) हैं या निराम हैं, रोग का क्रियाकाल, निदान (कारण), दोष की प्रकृति (वात, पित्त, कफ) और रोग की उत्पत्ति की ऋतु को ध्यान में रखकर, विपरीत क्रम से साध्य शोथ का उपचार करना चाहिए।"

मुख्य बिंदु

  1. रोगी का बल (Patient’s Strength)

    • मज़बूत रोगी में शोधन (पंचकर्म) जैसे आक्रामक उपचार संभव हैं।

    • दुर्बल रोगी में शमन चिकित्सा, हल्के मूत्रविरेचक और पौष्टिक आहार दिए जाते हैं।

  2. रोग का बल (Severity of Disease)

    • Acute edema (हल्का शोथ) में त्वरित सुधार संभव है।

    • Chronic या असाध्य शोथ (जैसे ESRD, Liver Cirrhosis, Heart Failure) में केवल लक्षण-नियंत्रण किया जाता है।

  3. दोष की संख्या और प्रकृति

    • एक दोष: जैसे केवल कफज शोथ – हल्के मूत्रविरेचक और कफहर द्रव्य।

    • अनेक दोष: वात-पित्त-कफ सम्मिश्र – संयोजन चिकित्सा आवश्यक।

  4. साम या निराम अवस्था

    • साम अवस्था: पहले अमा (toxins/metabolic waste) हटाना ज़रूरी – दीपान, पाचन, लंघन।

    • निराम अवस्था: सीधे दोषहर और शोथहर औषधियों का प्रयोग।

  5. क्रियाकाल (Stage of Disease)

    • प्रारंभिक अवस्था – रोग रोकने के लिए तीव्र उपचार।

    • उन्नत अवस्था – केवल supportive care।

  6. निदान (Cause)

    • आधुनिक चिकित्सा में: किडनी फेल्योर, लिवर सिरोसिस, हृदय रोग, प्रोटीन की कमी आदि।

    • आयुर्वेद में: आहार-विहार दोष, अग्नि मंदता, दोष संचय और स्रोतस अवरोध।

  7. ऋतु का विचार

    • जिस ऋतु में रोग हुआ, उसके विपरीत उपचार करना – जैसे वर्षा ऋतु में वात-कफ बढ़ने पर पित्तानुलोमन।


आधुनिक तुलना (Modern Correlation)

  • Acute Localized Edema → Sprain, Allergic swelling → आयुर्वेद में वात-कफजन शोथ

  • Generalized Edema → CKD, CHF, Cirrhosis → आयुर्वेद में त्रिदोषज असाध्य शोथ

  • Pitting Edema → Hypoalbuminemia, Heart failure → कफ व जल तत्व की वृद्धि

 अन्य चिकित्सासूत्र – Ayurvedic Treatment Protocols for Edema

चरक संहिता (चिकित्सा स्थान, अध्याय 12) में असाध्य एवं साध्य शोथ के लिए कई चिकित्सासूत्र दिए गए हैं। ये सूत्र रोग की उत्पत्ति के कारण, दोष की प्रकृति और शोथ की स्थिति के अनुसार उपचार का मार्गदर्शन करते हैं।


1. आम दोष जन्य शोथ

  • कारण: पाचन की कमजोरी और अपक्व रस (अमा)

  • उपचार:

    • लंघन – हल्का, सुपाच्य आहार

    • पाचन औषधियाँ – त्रिकटु चूर्ण, चित्तरथादी क्वाथ

    • आधुनिक समानता: Acute inflammatory edema


2. दोष अत्यधिक वृद्धि होने पर

  • उपचार:

    • संशोधन – वमन (ऊपरी भाग में दोष), विरेचन (निचले भाग में दोष)

    • पंचकर्म पूर्वक उपचार – दोष की तीव्रता कम करना

    • आधुनिक समानता: Severe systemic edema with high inflammation


3. शिरोभाग (सिर) में शोथ

  • उपचार:

    • नस्य कर्म – औषधि तेल या घृत की बूँदें नाक से देना, जिससे शिरोविरेचन हो।

    • आधुनिक समानता: Cerebral edema (supportive correlation)


 4. शरीर के अधोभाग में शोथ

  • उपचार:

    • विरेचन – तिक्त या स्निग्ध विरेचक द्रव्य

    • जैसे त्रिवृत लेह, एरंड तेल

    • आधुनिक समानता: Leg edema in CHF, nephrotic syndrome


 5. शरीर के ऊपरी भाग में शोथ

  • उपचार:

    • वमन – कटु, तिक्त औषधियों से वमन कर्म

    • जैसे मदनफल, यष्टिमधु

    • आधुनिक समानता: Upper limb edema, facial puffiness


6. स्निग्ध पदार्थों से उत्पन्न शोथ

  • उपचार:

    • रूक्षताकारक द्रव्य – जौ, कुल्थी, मसूर, त्रिकटु चूर्ण

    • उष्ण जल से स्नान, व्यायाम

    • आधुनिक समानता: High-fat diet induced metabolic swelling


 7. रूक्ष पदार्थों से उत्पन्न शोथ

  • उपचार:

    • स्निग्धताकारक द्रव्य – घृत, तिल तेल, अवलेह

    • सौम्य आहार

    • आधुनिक समानता: Protein-deficiency edema


 8. वातदोष जन्य शोथ और मलावरोध

  • उपचार:

    • निर्विघ्न मल त्याग हेतु निरूह बस्ती

    • दशमूल क्वाथ, बलादि बस्ती

    • आधुनिक समानता: Constipation-associated edema


9. पित्त-वात जन्य शोथ

  • उपचार:

    • तिक्त घृत – नीम, पाटोल, गुडूची से सिद्ध घृत

    • शीतल और शमनकारी औषधियाँ

    • आधुनिक समानता: Inflammatory edema with burning sensation


 10. मूर्च्छा, बेचैनी, जलन और प्यास के साथ शोथ

  • उपचार:

    • तिक्त क्षीरपाक – तिक्त औषधियाँ दूध में पका कर पिलाना

    • आवश्यकता अनुसार गोमूत्र मिश्रित दूध

    • आधुनिक समानता: Hepatic or septic edema with systemic symptoms


11. कफ जन्य शोथ

  • उपचार:

    • क्षार द्रव्य – यवक्षार, सैंधव

    • कटु-उष्ण औषधियाँ – अदरक, पिप्पली, चव्य

    • गोमूत्र, मट्टा (छाछ), आसव-arishta का प्रयोग

    • आधुनिक समानता: Hypothyroid or nephrotic edema

शोथ रोग में वर्जित आहार और व्यवहार

 

श्रेणी बचने योग्य वस्तुएँ / क्रियाएँ
मांसाहार गाँव, जलाशय या दलदली क्षेत्रों के पशु-पक्षियों का मांस; निर्बल या रोगी पशुओं का मांस
शाक-सब्ज़ी सूखा शाक, हाल ही में कटा नया अन्न
अन्य खाद्य गुड़ से बने पदार्थ, चावल के आटे के व्यंजन, तिल से बने पकवान, अत्यधिक तैलीय भोजन
दुग्ध-उत्पाद दही
अनाज अंकुरित और भूने हुए जौ (जैसे परमल)
स्वाद विशेष खट्टे (अम्लीय) पदार्थ, जलन पैदा करने वाले खाद्य
भोजन संयोजन पथ्य और अपथ्य वस्तुओं का मिश्रण
भारी आहार गुरु व कठिनपच भोजन, असात्म्य (जो शरीर के अनुकूल न हो) आहार
पेय मदिरा
दिनचर्या दिन में सोना, स्त्री-संपर्क

औषधियाँ

  • पुनर्नवा – मूत्रविरेचक, शोथहर

  • गोक्षुर – मूत्रमार्ग शुद्धिकरण

  • गुग्गुल – सूजन व वसा चयापचय संतुलन

  • शिलाजीत – बल्य व रसायन

  • त्रिफला – पाचन सुधार व दोषशमन

आहार-विहार

  • लघु, पचनीय, कम नमक वाला आहार

  • दिन में नींद वर्जित

  • हल्का व्यायाम व प्राणायाम

FAQs – असाध्य शोथ और Chronic Edema

Q1. क्या असाध्य शोथ पूरी तरह ठीक हो सकता है?

गंभीर और एंड-स्टेज रोगों में पूर्ण सुधार कठिन है, परंतु प्रारंभिक अवस्था में आयुर्वेदिक व आधुनिक चिकित्सा का संयुक्त प्रयोग लक्षण कम करने और रोग की प्रगति रोकने में सहायक हो सकता है।

Q2. क्या ESRD में आयुर्वेदिक औषधियाँ काम करती हैं?

हाँ, पुनर्नवा, गोक्षुर, गुग्गुल, शिलाजीत जैसी औषधियाँ सूजन कम करने, मूत्र प्रवाह बढ़ाने और रोगी की शक्ति में सुधार करने में सहायक होती हैं ।

Q3. Liver Cirrhosis में शोथ क्यों होता है?

Portal hypertension और Albumin की कमी से पेट (Ascites) व पैरों में तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जिसे आयुर्वेद में कफ व पित्त दोष की वृद्धि माना जाता है।

Q4. Heart Failure में edema कैसे बनता है?

हृदय की पम्पिंग क्षमता घटने से रक्त प्रवाह धीमा होता है और शिराओं में दबाव बढ़ने से पैरों, टखनों और पेट में सूजन बनती है। आयुर्वेद में इसे वायु अवरोध व कफ संचय कहा गया है।

Q5. असाध्य शोथ का मुख्य कारण क्या है?

वात, पित्त, कफ तीनों दोषों की गहन विकृति, रक्त और स्रोतस का अवरोध, और धातुओं की क्षीणता इसका मूल कारण है।

Q6. क्या असाध्य शोथ केवल पैरों में होता है?

नहीं, यह पूरे शरीर में (Anasarca), पेट में (Ascites), फेफड़ों में (Pleural effusion) और चेहरे पर भी हो सकता है।

Q7. क्या शोथ और जलोदर (Ascites) एक ही हैं?

शोथ एक सामान्य शब्द है जो किसी भी सूजन को दर्शाता है, जबकि जलोदर विशेष रूप से पेट में तरल के जमा होने को कहते हैं।

Q8. असाध्य शोथ में कौन-सा आहार लेना चाहिए?

लघु, पचनीय, मूत्रविरेचक आहार जैसे मूंग की दाल, लौकी, तोरई, जौ का पानी, और कम नमक वाला भोजन लेना चाहिए।

Q9. असाध्य शोथ में किन चीजों से बचना चाहिए?

अत्यधिक नमक, तैलीय भोजन, ठंडा पानी, दिन में सोना, शराब और भारी व्यायाम से बचना चाहिए।

Q10. क्या योग और प्राणायाम से शोथ में लाभ होता है?

हाँ, हल्का योग, anulom-vilom और भस्त्रिका प्राणायाम रक्त और लसीका प्रवाह में सुधार लाते हैं, जिससे सूजन कम हो सकती है।

Q11. क्या असाध्य शोथ में पंचकर्म किया जा सकता है?

हाँ, रोगी की स्थिति के अनुसार बस्ती, विरेचन, वमन और रक्तमोक्षण जैसे पंचकर्म किए जा सकते हैं, लेकिन यह वैद्य की देखरेख में होना चाहिए।

Q12. क्या असाध्य शोथ का संबंध किडनी रोग से है?

हाँ, Chronic Kidney Disease और ESRD में जल और अपशिष्ट का उत्सर्जन बाधित होने से generalized edema हो सकता है।

Q13. असाध्य शोथ में पुनर्नवा का उपयोग कैसे करें?

पुनर्नवा का काढ़ा, चूर्ण या अर्क (Punarnavadi kwath) मूत्रवर्धक और शोथहर गुणों के कारण अत्यंत लाभकारी है।

Q14. क्या असाध्य शोथ में तुरंत वजन बढ़ सकता है?

हाँ, तरल संचय के कारण कुछ ही दिनों में कई किलो वजन बढ़ सकता है, जो वसा नहीं बल्कि पानी के रूप में होता है।

Q15. क्या असाध्य शोथ में जीवनशैली परिवर्तन जरूरी है?

बिल्कुल, नियमित नींद, संतुलित आहार, नमक व तरल की मात्रा नियंत्रण, और मानसिक तनाव से बचाव रोग नियंत्रण में मददगार है।

Q16. क्या असाध्य शोथ में दर्द भी होता है?

हाँ, कुछ मामलों में त्वचा का खिंचाव, नसों का दबाव और मांसपेशियों में तनाव से दर्द महसूस हो सकता है।

Q17. क्या असाध्य शोथ के साथ सांस लेने में दिक्कत होती है?

हाँ, जब सूजन फेफड़ों या हृदय के आसपास तरल जमा होने के कारण होती है, तब सांस फूलना (Dyspnea) आम लक्षण है।

Q18. क्या असाध्य शोथ में तुरंत चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए?

हाँ, क्योंकि यह अक्सर गंभीर रोगों का संकेत है, और सही समय पर इलाज जीवन बचा सकता है।

Q19. क्या असाध्य शोथ में आयुर्वेदिक और आधुनिक उपचार साथ में लिए जा सकते हैं?

हाँ, योग्य वैद्य और डॉक्टर की देखरेख में दोनों पद्धतियों का संयुक्त उपयोग बेहतर परिणाम दे सकता है।

Q20. क्या असाध्य शोथ का निदान केवल देखने से हो सकता है?

नहीं, इसके लिए आधुनिक जांच जैसे किडनी, लिवर, हृदय की जाँच, रक्त और मूत्र परीक्षण आवश्यक होते हैं, साथ ही आयुर्वेदिक दोष और धातु की स्थिति का मूल्यांकन भी किया जाता है।

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