नाड़ी परीक्षण (Pulse Diagnosis) आयुर्वेद की सबसे प्राचीन और गूढ़ विद्या में से एक है। यह विधि शरीर, मन और आत्मा की सूक्ष्म गति को समझकर रोगों की पहचान करने की दिव्य क्षमता प्रदान करती है। आयुष्ययोगी (Ayushyogi) के माध्यम से हम इस प्राचीन ज्ञान को आधुनिक युग में पुनः जीवित कर रहे हैं ताकि हर व्यक्ति घर बैठे नाड़ी परीक्षण सीख सके।
अनेकौं भारतीय प्राचीन दुर्लभ विद्याओं में से नाड़ी परीक्षण भी एक अत्यधिक रहस्यमय और गंभीर जानकारी प्रदान करने वाली गूढ़ विद्या है।
मेरे १५ वर्षों के आयुर्वेद अभ्यास के अनुभव से मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि इसके “गुप्त” कहलाने के पीछे केवल एक ही मूल कारण है — और वह है भारत की शिक्षा नीति में वैदेशीकरण, विशेषतः आयुर्वेद और संस्कृत विषयों के प्रति विगत लंबे समय से दिख रही उपेक्षा। यही इन सभी समस्याओं का मूल कारण है।
जैसे-जैसे भारत में विदेशी वस्तुओं, विदेशी शिक्षा और विदेश जाकर पढ़ने की जो होड़ मची है — उसने लोगों के मन में संस्कृत में लिखे गए विषयों के अध्ययन के प्रति विरक्ति उत्पन्न कर दी है।
परिणामस्वरूप धीरे-धीरे लोग धर्मशास्त्र और आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों और शास्त्रों की गहराई में जाकर अध्ययन करने की परंपरा से दूर होते गए।
अब विद्यार्थी धर्मशास्त्र और आयुर्वेद तो पढ़ते हैं, परंतु उनके गुणों और रहस्यों की सच्ची जानकारी से वंचित रह जाते हैं।
विद्यार्थी अब केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होने के उद्देश्य से ही ग्रंथ पढ़ते हैं — उनका उद्देश्य ज्ञान नहीं बल्कि आर्थिक उन्नति बन गया है।
इसी कारण नाड़ी परीक्षण और अन्य गूढ़ विद्याएँ शास्त्रीय अध्ययन के अभाव में पीछे रह गईं।
वस्तुतः नाड़ी परीक्षण न तो कोई दुर्लभ विषय है, न ही गुप्त या जटिल।
यह तो आयुर्वेद का अत्यंत सूक्ष्म और तर्कसंगत अंग है — जिसे विधिपूर्वक अभ्यास से कोई भी समझ सकता है।
अब आपके मन में यह प्रश्न अवश्य आएगा कि —
क्या कोई भी व्यक्ति Ayushyogi Nadi Pariksha Online Class में घर बैठे (Online या Offline) नाड़ी परीक्षण की शिक्षा समझ सकता है?
तो इसका उत्तर है —
हाँ, परंतु इसके लिए आपको आयुर्वेद का सैद्धांतिक अध्ययन अवश्य करना होगा।
एक बात सदैव ध्यान रखें —
यदि आप नित्य आयुर्वेद के सिद्धांतों का अध्ययन नहीं करते, तो नाड़ी में पारंगत नहीं हो सकते।
नाड़ी परीक्षण को समझने के लिए आयुर्वेद के किन विषयों का अध्ययन करना चाहिए, यह मैं अपने विद्यार्थियों को इस प्रकार समझाता हूँ —
यथा विनागता तन्त्री सर्वान् रागान् प्रभाषते ।
तथा हस्तगता नाडी सर्वत्र रोगान् प्रकाशते ॥
स्त्रीणां भिषग्वामहस्ते वामे पादे च यत्र च ।
शास्त्रेण सम्प्रदायेन तथा स्वानुभवेन च ॥
प्रातः कृतसमाचारः कृताचारः परिग्रहम् ।
सुखासीनः सुखासीनं परीक्षार्थानुपाचरेत् ॥
सद्यः स्नातस्य सुप्तस्य क्षुत्तृष्णातपशीलिनः ।
व्यायामश्रान्तदेहस्य सम्यक् नाडी न विद्यते ॥
भुक्तस्य सद्यः स्नातस्य निद्रितस्योपसेविनः ।
व्यवायश्रान्तदेहस्य भूतावेशिनि रोदने ॥
सुन्दरीणां च संयोगे मद्यपाने मतिभ्रमे ।
अपस्मारे श्रान्तदेहे नाडी सम्यङ् न बुध्यते ॥
त्यक्तमूत्रपुरीषस्य सुखासीनस्य रोगिणः ।
अन्तर्जानू करस्थापि नाडीं सम्यक् परीक्षयेत् ॥
उत्तिष्ठन् न परीक्षेत् वैद्यो नाडीमनुत्तमाम् ।
स्थित्वा सुखासनस्थोऽथ स्थिरचित्तः परीक्षयेत् ॥
स्थिरचित्तो निरोगश्च सुखासीनः प्रसन्नधीः ।
नाडीज्ञानसमर्थः स्यादित्याहुः परमर्षयः ॥
पीतमद्यश्चंचलात्मा मलमूत्रादिवेगयुत् ।
नाडीज्ञानेऽसमर्थः स्याल्लोभाक्रान्तश्च कामुकः ॥
एकाङ्गुलं परित्यज्य मणिबन्धे परीक्षयेत् ।
अधः करेण निष्पीड्य त्रिभिरङ्गुलिभिर्मुहुः ॥
वारत्रयं परीक्षेत् धृत्वा धृत्वा विमोचयेत् ।
विमृश्य बहुधा बुध्या रोगव्यक्तिं विनिर्दिशेत् ॥
(संदर्भ – योगरत्नाकर)
समदोषः (३) समाग्निश्च (१३), समधातु (७), मलक्रियाः (३), प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
धातु | संबंधित मल | उदाहरण |
---|---|---|
रस | जिह्वा का मैल | |
रक्त | रंजक पित्त | |
मांस | कान का मैल | |
मेद | दाँत व लिंग का मैल | |
अस्थि | नख | |
मज्जा | नेत्र का कीचड़ | |
शुक्र | यौवन पिड़िका, कील, मुहाँसे |
प्राण वायु
रूक्षता, व्यायाम, उपवास, अधिक भोजन कर लेने, चोट लगने, अधिक चलने और वेगों के प्रेरित करने अथवा उसे रोकने से कुपित होकर
श्वास-प्रश्वास का नियंत्रण (Respiration)
हृदय की गति और चेतना का संचालन (Cardiac and mental functions)
इंद्रियों को सक्रिय रखना (Sensory awareness)
मन और बुद्धि को स्थिर रखना (Mental stability & clarity)
प्राण शक्ति का प्रवाह (Vital energy distribution)
मार्गावरोध जन्य दृष्टि से रोग:
श्वास कष्ट (Breathlessness / Asthma / Dyspnea)
हृदय की धड़कन तेज होना (Palpitation)
सिर चकराना, बेहोशी (Vertigo, Fainting)
चिंता, अनिद्रा (Anxiety, Insomnia)
वाणी में अटकना (Speech disturbance)
गले में रुकावट या “globus hystericus” जैसा अनुभव
मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में असंतुलन
अर्धांगवात (Hemiplegia)
मिर्गी / अपस्मार (Epilepsy-like seizures)
Bronchial asthma (Bronchospasm = airflow blockage)
Hypertension (स्नायु तंत्र की over-activity)
Anxiety neurosis, Panic attacks
Epilepsy, Stroke, Migraine
Cervical spondylosis में breath-blocking symptom
उपरोक्त कारणों से प्राण वायु कमजोर पड़ जाती है —
(जैसे अधिक उपवास, रक्तक्षय, दुर्बलता, मानसिक थकान etc.. )
थकान, आलस्य (Fatigue, Lethargy)
श्वास की दुर्बलता (Weak respiration)
हृदय की कमजोरी (Low cardiac output, Heart failure tendency)
चेतना में मंदता (Lack of alertness)
स्मृति दोष (Poor memory, dementia tendency)
बार-बार बेहोशी (Syncope)
श्वसन संक्रमण की प्रवृत्ति (Low immunity in lungs)
Chronic Obstructive Pulmonary Disease (COPD)
Anemia (रक्त और ऑक्सीजन की कमी से breathlessness)
Heart failure (कम cardiac output)
Chronic fatigue syndrome
Neurological weakness (Autonomic dysfunction)
प्राण वायु की कमजोरी हो तो शरीर के circulation system में दिक्कतें आती है रोगी catheter लिए घूम रहा होता है क्योंकि पेशाब सही गति से संचरण नहीं हो रहा होता है ऐसे ही शरीर के अन्य मल और धातुओं की गति में धीमी पड़ जाती है। इंद्रियों में कमजोरी आती है।
उदान वायु का मुख्य स्थान – उरः (छाती), कंठ (गला) और मस्तक (सिर) है।
यह वायु ऊर्ध्वगामी (ऊपर की ओर) गति करने वाली होती है।
प्रीणनधीधृतिस्मृतिमनोवोध आदिकृयः।
वाक्प्रवृत्ति से सम्वन्धित स्रोतस का पीडन्।धैर्य वोधन,धीवोधन,सृमृति वोधन,मनोवोधन, आदि कार्यों को संपादित करता है।
वाग्भाषित गीत प्रवृत्तिः।
वाणी का निर्माण (Speech production)
उत्साह और ऊर्जा देना (Vital energy & confidence)
स्मृति, बुद्धि और चेतना को बनाए रखना
मुखमंडल का तेज और आभा (Facial glow, Aura)
ऊर्ध्वगामी क्रियाएँ करना – जैसे बोलना, हँसना, डकार लेना, उल्टी करना, छींकना आदि।
मृत्युकाल में प्राण का शरीर से ऊपर उठना – यह उदान वायु का कार्य माना गया है।
वाणी में अटकना या आवाज बैठ जाना (Hoarseness of voice)
गले में रुकावट का अहसास (Globus sensation)
बोलने में कठिनाई (Speech disturbance)
चक्कर, बेहोशी (Vertigo, Fainting)
हिचकी, उल्टी, या खांसी की तीव्रता
ऊपरी शरीर में जकड़न
Laryngitis / Voice box infection
Thyroid or vocal cord disorders
Vertigo / Dizziness
Speech impediments (stammering, aphasia)
Respiratory blockage (asthma, choking)
उदान वायु की धातुक्षयजन्य दृष्टि से
जब शरीर की ऊर्जा या धातु क्षीण हो जाती है, तब उदान वायु दुर्बल हो जाती है।
आवाज बहुत धीमी या न निकलना (Loss of voice)
थकान, उत्साह की कमी (Fatigue, Depression)
ध्यान व स्मृति में कमी
चेहरे का तेज कम होना (Dullness of face)
बेहोशी, चेतना की मंदता
मृत्यु के समीप चेतना का लुप्त होना
Nervous exhaustion / Chronic fatigue
Parkinsonism, Dementia
Depression and speech disorders
Respiratory muscle weakness
समान वायु का मुख्य स्थान — अमाशय (stomach) और पच्य भाग (intestines) के बीच का क्षेत्र है।
यह जठराग्नि (digestive fire) के चारों ओर स्थित रहती है और ऊर्ध्व (upward) और अधो (downward) दोनों दिशाओं में काम करती है।
पाचन (Digestion):
भोजन के रस को समान रूप से मिलाकर पाचन कराती है।
शोषण (Absorption):
पचे हुए आहाररस को धातुओं तक पहुँचाने में सहायक।
अग्नि का प्रज्वलन (Maintains Digestive Fire):
जठराग्नि को संतुलित रखती है।
ऊर्ध्व व अधो वायु का समन्वय (Coordination):
प्राण वायु (upward) और अपान वायु (downward) के बीच सामंजस्य बनाती है।
शरीर का पोषण (Nourishment):
प्रत्येक धातु को सही मात्रा में रस पहुँचाती है।
जब समान वायु अधिक बढ़ जाती है या रुक जाती है —
(अत्यधिक वातजन्य आहार, अनियमित भोजन, तनाव, गैस, कब्ज आदि कारणों से)
भूख का असंतुलन (ज्यादा या कम लगना)
पाचन में गड़बड़ी, अम्लपित्त (Acidity, Indigestion)
डकार, पेट में गैस
उल्टी, पेट दर्द
पेट फूलना (Bloating)
कब्ज या दस्त
अपचन से शरीर में भारीपन
Indigestion (Dyspepsia)
Irritable Bowel Syndrome (IBS)
Hyperacidity / Gastritis
GERD (Acid reflux)
Flatulence, Bloating
समान वायु की धातुक्षयजन्य दृष्टि से
जब अग्नि और धातु दोनों कमजोर हो जाते हैं, तब समान वायु दुर्बल हो जाती है।
भूख न लगना (Loss of appetite)
अत्यधिक कमजोरी (Weakness, low energy)
पाचन शक्ति का अभाव (Low digestive fire)
खाया हुआ न पचना (Malabsorption)
शरीर में रस की कमी (Nutrient deficiency)
मांस, रक्त आदि धातुओं का क्षय
Malnutrition
Poor digestion & nutrient absorption
Chronic gastritis
Digestive enzyme deficiency
व्यान वायु का स्थान संपूर्ण शरीर है।यह ऊपर, नीचे, बाहर, अंदर — हर दिशा में गतिशील रहती है। यह शरीर के प्रत्येक भाग में रक्त, रस और प्राण का संचार करती है। इसका केंद्र हृदय माना गया है, जहाँ से यह पूरे शरीर में फैलती है।
रक्त संचार (Blood circulation)
स्नायु, मांसपेशियों और अंगों का समन्वय (Coordination of muscles & nerves)
शरीर की गति, चलना-फिरना, परिश्रम करना (Movement & physical activity)
हृदय की धड़कन और नाड़ी का संचालन (Heartbeat & pulse regulation)
शरीर में रस, ओज और प्राण का प्रवाह (Distribution of energy and nutrition)
त्वचा और इंद्रियों की संवेदना (Sensory perception)
हृदय की धड़कन तेज होना (Palpitation, Irregular heartbeat)
रक्तचाप बढ़ना (High BP)
हाथ-पैरों में कंपन या झटके (Tremors)
शरीर में झनझनाहट (Numbness, tingling)
दर्द या अकड़न (Body stiffness or muscle cramps)
शरीर के किसी हिस्से में रक्त प्रवाह रुकना (Blockage, paralysis)
Hypertension (High BP)
Arrhythmia (Irregular heartbeat)
Stroke / Paralysis
Peripheral neuropathy
Parkinsonism / Tremors
जब व्यान वायु कमजोर पड़ती है, तो रक्त और ऊर्जा का प्रवाह मंद हो जाता है।
कमजोरी, थकान (Fatigue, low stamina)
हृदय की गति धीमी पड़ना (Bradycardia)
ठंडापन (Cold hands & feet)
रक्तसंचार की कमी (Poor circulation)
घावों का देर से भरना (Slow healing)
शरीर में जड़ता या निष्क्रियता
Low blood pressure
Heart failure
Peripheral vascular disease
Chronic fatigue syndrome
अपान वायु का मुख्य स्थान — पेल्विक क्षेत्र (Pelvic region), विशेषकर मूत्राशय, गुदा, जननेंद्रिय, और जांघों के नीचे का भाग है।
यह वायु अधोगामी (Downward moving) होती है।
मलोत्सर्जन (Excretion of stool)
मूत्रोत्सर्जन (Urination)
वीर्य स्राव (Ejaculation / Reproductive function)
प्रसूति क्रिया (Childbirth / Delivery)
ऋतुचक्र का नियमन (Menstrual cycle regulation)
शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन (Elimination of wastes)
इस प्रकार अपान वायु शरीर की शुद्धि (purification) और प्रजनन (reproduction) दोनों का नियंत्रण करती है।
जब अपान वायु अधिक या रुकावट वाली हो जाती है —
(जैसे कब्ज, वातवर्धक आहार, मानसिक तनाव, ठंडी चीजें, देर तक बैठना)
कब्ज (Constipation)
मूत्र रुकावट या बार-बार मूत्र आना (Urinary retention / frequency)
मासिक धर्म विकार (Irregular periods, Painful menses)
गर्भपात या प्रसव में कठिनाई (Abortion tendency / difficult labor)
वीर्य दोष (Semen disorders, premature ejaculation)
गैस, पेट दर्द, गुदा में भारीपन
Constipation, Piles
Urinary tract disorders (UTI, retention)
PCOD / Dysmenorrhea / Infertility
Prostate enlargement
Pelvic floor dysfunction
जब अपान वायु कमजोर हो जाती है —
(जैसे अत्यधिक श्रम, उपवास, रजोनिवृत्ति, रक्तक्षय आदि)
मल-मूत्र का नियंत्रण न रहना (Incontinence)
प्रसव के बाद कमजोरी
शिश्न या जननांगों में दुर्बलता
वीर्य अल्पता या नपुंसकता
मासिक धर्म का बंद होना (Amenorrhea)
गर्भधारण में कठिनाई (Infertility)
Urinary incontinence
Erectile dysfunction
Infertility (Male or Female)
Pelvic muscle weakness
Postpartum weakness
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