आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अनेक प्रकार के अवलेह, क्वाथ और चूर्णों का वर्णन है। इन्हीं में से एक अत्यंत प्रभावी योग है – कंसहरीतकी (Kansharitaki)। यह औषधि सिर्फ आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे –
कंसहरीतकी की निर्माण विधि
इसमें प्रयुक्त औषधीय द्रव्यों का गुणविशेष
आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित इसके फायदे
आधुनिक शास्त्रों की दृष्टि से इसका वैज्ञानिक विश्लेषण
आज के समय में इसके उपयोग की प्रासंगिकता
आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि कंसहरीतकी को एक विशेष प्रक्रिया से तैयार किया जाता है।
पंचमूल समूह की विभिन्न औषधियों (सरिवन, पिठवन, रेंगनी, बनभण्टा, गोखरू, श्रीफल की छाल, गम्भार की छाल, पाढल की छाल, गनियार की छाल और सोनापाठा की छाल) को 8 गुना शुद्ध पानी में पकाया जाता है।
100 बड़ी हरड़ (हरितकी) को पोटली में बाँधकर दोलायंत्र पद्धति से पकाया जाता है।
जब जलांश कम हो जाता है {चौथा हिस्सा बच जाता है तो} हरड़ को निकालकर उसका बीज हटा दिया जाता है।
शेष क्वाथ को छानकर गुड़ या मिश्री मिला चासनी तैयार किया जाता है और ऊपर से गरम रहते ही, सोंठ, मरीच, पिप्पली, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता यवक्षार (क्षार) डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है तथा आग से कढ़ाई को बाहर निकाल कर जब वह ठंडा हो जाएगा तो मधु मिलाकर अवलेह तैयार किया जाता है।
इस प्रकार तैयार हुआ अवलेह ही कंसहरीतकी अवलेह कहलाता है।
सर्दी के सीजन में जब हरण अच्छी तरह पक जाता है तो आयुष योगी सेंटर में कंसहरीतकी अपने आयुर्वेद पढ़ने वाले विद्यार्थी या रोगियों के लिए ताजा और शुद्ध विधि से तैयार किया जाता है आप भी सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रहना चाहते हो और यह चाहते हो कि शरीर को हमेशा रसायन मिलता रहे तो इसके लिए समय से पहले ही हमसे संपर्क कर ऑर्डर बुक करें इसके लिए आप 8699 175212 में संपर्क कर सकते हैं।
इस आयुर्वेदिक रसायन का एक बार सेवन करने वाला बार-बार इसकी मांग करता है आप एक बार सही विधि से बनाया हुआ कंशहरीतकी मंगा कर सेवन जरूर करें।
आयुर्वेद में इस अवलेह को बहुविकारनाशक कहा गया है।
शोथ नाशक – सूजन और जलोदर जैसे रोगों में लाभकारी।
पाचन तंत्र सुधारक – अजीर्ण, अरोचक, गुल्म, उदररोग, अम्लपित्त आदि में उपयोगी।
त्रिदोष हर – वात, पित्त और कफ सभी दोषों का शमन करता है।
रक्तविकार नाशक – पांडुरोग (एनीमिया), रक्तपित्त, त्वचा के वर्णदोष आदि।
मूत्रविकार नाशक – प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र और मूत्रशोधन में सहायक।
प्रतिरक्षा वर्धक – ज्वर, श्वास, कृशता और वीर्यदोष को दूर करता है।
आयुर्वेदिक गुण – त्रिदोषनाशक, दीपन-पाचन, रसायन।
आधुनिक शोध – इसमें tannins, chebulinic acid, chebulagic acid पाए जाते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण रखते हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टि – रक्तवर्धक, बल्य, पाचन सुधारक।
आधुनिक दृष्टि – इसमें Iron, Calcium, Magnesium पाए जाते हैं, जो एनीमिया और थकान को कम करते हैं।
आयुर्वेदिक गुण – अग्निदीपन, कफनाशक, श्वासकासहर।
आधुनिक विज्ञान – इनका bioenhancer effect है, जिससे अन्य औषधियों का अवशोषण बढ़ता है।
आयुर्वेदिक गुण – वात-पित्त शामक, पाचन सुधारक, सुगंधकारी।
आधुनिक विज्ञान – इनमें essential oils होते हैं जो एंटीमाइक्रोबियल और डाइजेस्टिव हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टि – अन्नवहस्रोत को शुद्ध करने वाला, गैस व अजीर्ण निवारक।
आधुनिक दृष्टि – क्षारीय तत्व पेट की एसिडिटी को संतुलित करते हैं।
आयुर्वेदिक गुण – शोथहर, मूत्रल, वात-कफ शामक।
आधुनिक दृष्टिकोण – इनमें anti-inflammatory, diuretic, hepatoprotective तत्व पाए जाते हैं।
आधुनिक शोधों के अनुसार कंसहरीतकी के गुण –
Anti-inflammatory (शोथहर) – इसमें मौजूद टैनिन्स और फ्लेवोनॉइड्स शरीर की सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करते हैं।
Hepatoprotective (यकृत संरक्षक) – यह लिवर को विषाक्त पदार्थों से बचाता है।
Antidiabetic (मधुमेह नाशक) – गुड़ और अन्य घटकों के साथ यह रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में सहायक है।
Immunomodulatory (प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाला) – रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
Digestive Health – यह पेट की गैस, एसिडिटी, अपच और भूख न लगने जैसी समस्याओं को ठीक करता है।
Renal Support (गुर्दे का सहायक) – मूत्रल प्रभाव से गुर्दों की कार्यक्षमता को बनाए रखता है।
Cardio-protective (हृदय सुरक्षा) – एंटीऑक्सीडेंट गुण हृदय को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
इस रोग के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करो
सूजन (Edema, Inflammation)
प्रमेह (Diabetes, Urinary Disorders)
पांडुरोग (Anemia)
अरोचक (Loss of Appetite)
अम्लपित्त (Hyperacidity)
रक्तपित्त (bleeding disorderLiver Cirrhosis,Esophageal Varices जैसे रोग
कृशता (Weakness, Emaciation)
श्वास (Asthma, COPD)
गुल्म एवं उदररोग (Abdominal Disorders, IBS)
ज्वर (Fever, Infection)
प्रातः 1 हरितकी खाकर, लगभग 2 कर्ष (10–12 gm) अवलेह चाटना चाहिए।
इसके बाद हल्का गुनगुना जल पीना लाभकारी है।
चिकित्सक की देखरेख में सेवन करना श्रेष्ठ है।
अत्यधिक मात्रा में सेवन करने पर दस्त या अधिक क्षारीय प्रभाव हो सकता है।
मधुमेह रोगी को गुड़ की मात्रा पर ध्यान देना चाहिए।
गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं को चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
कंसहरीतकी अवलेह केवल एक पारंपरिक औषधि नहीं बल्कि आधुनिक दृष्टिकोण से भी एक अद्भुत औषधीय योग है। इसके निर्माण में प्रयुक्त हर एक घटक वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। यह रोगों को जड़ से ठीक करने, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और त्रिदोष संतुलन में सहायक है।
आज के समय में, जब जीवनशैली संबंधी रोग (Lifestyle Disorders) तेजी से बढ़ रहे हैं, कंसहरीतकी एक प्राकृतिक और सुरक्षित समाधान प्रस्तुत करती है।
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