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नाड़ी में रूक्ष गुण की पहचान और लक्षण – आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से संपूर्ण विश्लेषण | Ayushyogi

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आयुर्वेद में रूक्ष गुण (Dryness quality) को शरीर और नाड़ी दोनों में पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह गुण वायु, अग्नि और पृथ्वी महाभूतों से मिलकर बना होता है और शरीर के अंदर शोषण, स्तम्भन तथा कठोरता लाता है।

जब नाड़ी में रूक्ष गुण बढ़ जाता है, तो व्यक्ति के शरीर में शुष्कता, क्लेद (नमी) की कमी, त्वचा की रूखापन, दुर्बलता और वर्ण का नाश देखा जाता है।


 रूक्ष गुण का आयुर्वेदिक स्वरूप

रूक्ष गुण का मुख्य कार्य अवशोषण (Absorption) है। यह शरीर से जलीय अंशों को सुखा देता है, जिससे कफ घटता है और वात की वृद्धि होती है। इस गुण में स्तम्भन शक्ति भी होती है, जिससे शरीर की गतिशीलता कम होकर कठोरता बढ़ती है।

मुख्य प्रभाव:

  • बल एवं वर्ण का नाश

  • क्लेद व कफ का शोषण

  • शरीर में कर्कशता (कठोरता)

  • स्तम्भन एवं शोषक प्रभाव


 रूक्ष गुण वाले प्रमुख आहार पदार्थ

रूक्ष गुण सबसे अधिक मिलेट्स (जैसे जौं, कोदो, बाजरा, कंगनी) में पाया जाता है। ये द्रव्य शरीर से अतिरिक्त जल और कफ को सोख लेते हैं।


 रूक्ष गुण से संबंधित रस (Tastes related to Ruksha Guna)

रस गुण प्रभाव
कटु रस रूक्ष, उष्ण, लघु वात वृद्धि, कफहर, दीपन-पाचन
तिक्त रस रूक्ष, शीत, लघु कृमिघ्न, रक्तशोधन, विषघ्न
कषाय रस रूक्ष, शीत, लघु स्तम्भक, संधानीय, क्लेदनाशक

  रूक्ष गुण की अधिकता क्रम:
कषाय रस > कटु रस > तिक्त रस


  कटु रस का शरीर पर प्रभाव

  • नाड़ीसंस्थान: इन्द्रियोत्तेजक, संज्ञास्थापन

  • पाचनसंस्थान: मुखशोधन, दीपन, पाचन, क्रिमिघ्न, रोचन, ग्राही

  • रक्तवहसंस्थान: हृदयोत्तेजक, रक्तस्रावकर

  • श्वसनसंस्थान: कफहर

  • मूत्रवहसंस्थान: मूत्रसंग्रहणीय

  • सात्मीकरण: धातुनाशन, कर्षण, लेखन, विषघ्न

  • त्वचा: कुष्ठघ्न, कण्डूघ्न


  तिक्त रस के प्रभाव

  • पाचनसंस्थान: दीपन, पाचन, कृमिघ्न, पुरीषशोषण

  • रक्तवहसंस्थान: रक्तप्रसादन, अहृद्य

  • श्वसनसंस्थान: कफघ्न

  • सात्मीकरण: लेखन, मेद-वसा-लसीका पूयनाशन, विषघ्न

  • त्वचा: कुष्ठघ्न, दाहप्रशमन, स्थिरीकरण

  • ज्वर: ज्वरघ्न


  कषाय रस के प्रभाव

  • पाचनसंस्थान: स्तम्भन

  • रक्तवहसंस्थान: संधानीय

  • प्रजननसंस्थान: अवृष्य

  • सात्मीकरण: शोषण, कफघ्न

  • त्वचा: सवर्णीकरण, रोपण, पीडन


  नाड़ी में रूक्ष गुण की पहचान (Pulse characteristics of Ruksha Guna)

नाड़ी परीक्षण में रूक्ष गुण का अनुभव एक कठोर, शुष्क और असमान गति के रूप में होता है। इसे सूक्ष्म निरीक्षण और स्पर्श ज्ञान से पहचाना जा सकता है।

उंगली अनुभव / गति लक्षण
तर्जनी (Vata स्थान) सूखी, कर्कश, अस्थिर गति त्वचा रूखी, आवाज में खरापन, नींद कम
मध्यमा (Pitta स्थान) मध्यम कठोरता, थरथराहट पाचन में तीव्रता, जलन, दाह
अनामिका (Kapha स्थान) कम गमनशील, कम लचीलापन शुष्क कफ, गाढ़ा बलगम, भारीपन की कमी

नाड़ी में रूक्ष गुण की पहचान

समग्र अनुभव:

रूक्ष नाड़ी को स्पर्श करने पर ऐसा लगता है जैसे सूखी रस्सी के भीतर से हल्की हवा गुजर रही हो — यह कर्कश, असमतल और खुरदुरी स्पंदन वाली होती है।
यह नाड़ी सामान्यतः वात प्रधान व्यक्तियों में या अत्यधिक उपवास, व्यायाम, रूक्ष आहार, तिक्त-कटु-कषाय रस सेवन से उत्पन्न होती है।

रूक्ष गुण की अधिकता में देखे जाने वाले लक्षण

  • त्वचा का सूखना, रूखापन

  • बालों का झड़ना या रूखे होना

  • कब्ज, गैस, कमजोरी

  • मन में चिड़चिड़ापन, अनिद्रा

  • जोड़ों का खड़कना

  • शरीर में स्फूर्ति की कमी


  रूक्ष गुण को संतुलित करने के उपाय

  • स्निग्ध (तेलयुक्त) आहार जैसे तिल का तेल, घी, दूध

  • वातशामक औषधियाँ जैसे अश्वगंधा, बाला, दशमूल

  • नियमित अभ्यंग (तेल मालिश)

  • पर्याप्त जल सेवन

  • मधुर और अम्ल रस वाले पदार्थों का सेवन


 निष्कर्ष

नाड़ी में रूक्ष गुण की पहचान करना नाड़ी विज्ञान का एक गूढ़ और सूक्ष्म भाग है। यह न केवल रोगी की वर्तमान अवस्था को दर्शाता है बल्कि शरीर में वात की वृद्धि और कफ की कमी का स्पष्ट संकेत भी देता है।
आयुषयोगी नाड़ी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में इस प्रकार के गुण आधारित नाड़ी विश्लेषण को विस्तार से सिखाया जाता है ताकि विद्यार्थी स्वयं इस ज्ञान को अनुभव कर सकें।

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